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Thursday, July 11, 2019

मेंटल ही है

कंगना रानोत की आगामी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के काफी चर्चे है। हिंदी फिल्म  'गैंगस्टर' सें अपने अभिनय की शुरूआत करने वाली इस अभिनेत्री ने बेशक बहुत अच्छा काम किया है।
कंगना की अभिनय क्षमता पे शक नही किया जा सकता। मे तो ये कहना चाहूंगा कि वो अपना काम दो सौ प्रतिशत मेहनत के साथ करती है।
ओर इस बात का फायदा भी कंगना को मिला है। लोगों ने काफी पसंद किया है उन्हें। कंगना हिंदी फिल्मों की अब तक की सबसें मुहंफट सफल अभिनेत्री रही हे जो सबसे ज्यादा विवादों मे भी रही है। ओर ये आश्चर्यजनक है कि कंगना का हर नकारात्मक विवाद उसके फिल्मी कैरियर के लिय सकारात्मक साबित हुआ है।
हाल ही में एक पत्रकार के साथ हुआ कंगना का विवाद हर किसी की जुबान पर है। उससें कंगना की दो आगामी फिल्मो को बहुत बङा फायदा मिलने वाला है। कंगना की छवि को इन दोनों फिल्मों मे खूब भुनाया जाएगा। अब  सवाल यह है कि क्या कंगना जानबूझकर अपनी फिल्मों को हिट करवाने के लिए अपनी यह छवि बना रही है। अगर वास्तव में एसा है तो मैं कंगना को अपनी कोहनी तक हाथ जोङकर प्रणाम करना चाहूंगा। काम के प्रति इतना त्याग और जूनून ओर कहां मिलेगा आपको।

Thursday, July 4, 2019

Newsmaker of the Year: RaGa

Rahul Gandhi is making much news, since he lost the election. Even before the election he was very aggressive. His resignation grabs the attention of people. Since the last four - five days he holded the top position of the front page in all English and Hindi newspapers. He became the center of talk at all leading news channels. He is not quitting, he is just starting. Rahul Gandhi has taken the whole responsibility to himself for losing the recent election. He showed the maturity to rebrand himself. These are the new strategies to establish his political image by congress. All propaganda is for making headlines in the news media, and he is doing it effectively. People are talking much about her resignation. For Politicians how easy it is  to fool the people. I want to say that the news media has become the biggest mindless army.  

Wednesday, July 3, 2019

Afterall He is Your Husband

After a long time, around one and half years, I dialed my close friend's number and she picked up the phone and started crying. I asked her what happened, she told me that he had beaten me up again. "why '' I ask. She told me that "afterall he is my husband". These words are enough for her to shut my mouth. because these words she heard from her mom, her mom heard from her grandmother, and  grandmother heard from her great grandmother. I can't understand from where this bullshit came up in our society. I didn't read anywhere that your husband can beat you. If it is written somewhere in any book, I would like to read that book.  

Thursday, June 27, 2019

लाखों की बात

तो दोस्तो लाखो की बात है या नही पर काम की बात जरूर है कि इन दिनो मुझे समझ नही आ रहा मे क्या लिखना है। राजनीती मे तो रोज नये नाटक हो रहे हैं। कोई ताजगी  राजनीती में बची नही है।तो आइये बात करते हैं ताजा ताजा रिलीज हूई हिंदी फिल्म कबीर सिंह की। अगर कबीर सिंह की बात करेंगे तो लाखों बात करोङों पे जाएगी। कोन सा मेरी जेब से लग रहें है। जनता प्यार सें दे रही है। ओर जनता जनता जनार्दन है भाइसाब रातोंरात किसी को स्टार बना देती है। ओर रातोंरात बेकार भी यही जनता बनाती है । पहले तो कबीर सिंह  के ट्रेलर ने काफी सुर्खियां बटोरी। फिर गानों ने धमाल मचाया। अब पूरी फिल्म ने गदर मचाया हुआ है। फिल्म ने आग लगा दी भाईसाहब। शाहिद ओर कियारा ने इतनी संजीदगी से काम किया है कि सब को अपना पहला प्यार याद दिला दिया है। बेशक इस फिल्म के बाद शाहिद ओर कियारा के सितारे बुलंद हो गये हैं। दोनों ने इस फिल्म में जान डाल दी, ओर फिल्म ने दोनो के स्टारडम में जान डाल दी है। इसे कहते हे असली गिव एंड टेक, पहले दो फिर लो।

Tuesday, May 28, 2019

Dead Democracy

I haven't written anything since last one month. I didn't have enough time to  write my opinion because of the last semester projects and exams. Being a student of mass communication at CU Punjab I met various peoples, belonging to Kerala, Telangana, Bihar, Rajasthan, UP Orissa, Punjab and some other states also. Latest LokSabha Election was in between the ideologies. The biggest ever battle of ideologies. The battle was between the public who supports the major leader and who don't support the leading star of the election. There was no election between the candidates. There was no other option to choose. one single party was there. They ran solo in the race and became the winner. Is this democracy? Then what is democracy? There could be no chance in the future for the word democracy. Who will be responsible for the death of democracy, off course the public, who goes with the pity emotions and waves of some charismatic people. They don't apply their mind, they go with the heart. And they make God to somebody. I have seen too many young people on social media and my surroundings campaigning for the lead star of the election. I can't understand  that it was an election or a grand festival for the celebration of the death of democracy. People got  honey trapped every time to the cheeji speeches of their opinion leader. and they don't even realise what they are doing.  

Saturday, March 30, 2019

बातों के भूत

हमारे महान देश भारत के लोग बड़े बातूनी होते है।
नवजात बच्चे से भी बात करने की उम्मीद की जाती है।
कुछ लोग तो ऐसे भी है जो बच्चे के जन्म के पहले ही उससे बात करना शुरू कर देते है।
महाभारत में भी अभिमन्यु ने माँ के पेट में ही बोहत कुछ सिख लिया था। अभी के नवजात बच्चे तो इतने ज्यादा बातूनी है की आश्चर्य होता है उन्हें सुनकर।
हैरान कर देने वाली बात है की ये बदलाव आया कैसे ?
कहा से इस नस्ल में इतनी बढ़िया चीजे अपने आप आ रही है ?
माँ के पेट से सीख के आ रहे है क्या ये सब कुछ, आइये आइये आजकल बातूनी लोगों की डिमांड भी बोहत है। हर नौकरी में संचार कौशल में निपुणता एक पात्रता मापदंड होता है।
लेकिन क्या सिर्फ बातों से गुजारा हो जाता है ? कुछ लोगो का हो जाता है।
मैंने कुछ ऐसे लोगो को करीब से देखा है जिन्होंने जिंदगी भर  सिर्फ बातें मारी है और अपनी सारी जिम्मेदारियां अपने सारे काम भी बातों बातों में निपटा दिए।
कुछ लोगों से जितनी चाहे बातें  करा लो वो थकते ही नहीं,  वो बात करने के इतने ज्यादा आदि होते है की एक बार शुरू हो गऐ तो बस फिर।  विश्वविद्याल्य  के पुस्तकालय  में भी वे किसी न किसी मुद्दे पे चर्चा करेंगे।हमारे हॉस्टल में तो कुछ लोग सिर्फ बातें मारने के लिए लाइब्रेरी आते है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर भी तो देखो बातों बातों में किस तरह वक़्त  का पता ही नहीं चलने दिया।
ओर अब एक बार फिर आपका टाइमपास करने का सोच रहे है।
अपनी अपनी प्रतिभा है कुछ  ही लोगों के पास होती है।
ये होता भी है कुछ लोग बातें बड़ी मजेदार करते है पर कुछ लोगों की बाते बड़ी बेस्वाद होती है।
जैसे हमारे एक संघर्षशील  युवा राजनेता राजनीति जिनके खून में होनी चाहिए थी मगर अब क्या करे अपना अपना हुनर  है।
हर किसी की बात में मजा आये जरुरी तो नहीं , मजा किसी का गुलाम नहीं साहब आये तो आये ना आए तो ना आए उसकी अपनी मर्जी है।
पर जनता को मजा चाहिए मजेदार बात करने वाले आजकल डिमांड में है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर देखो किस तरह बातो बातों में लोगों को अपना बना लेते है और कुछ करना भी नहीं पड़ता।
एक पुरानी  फिल्म भी है ''बातों बातों में'' अगर वक़्त हो तो देखना बातों बातों में फिल्म कब पूरी हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
वैसे ''मेरे  प्यारे प्राइम मिनिस्टर'' भी एक फिल्म है अभी अभी रिलीज़ हुइ  है मैंने देखी  नहीं है पर नाम अच्छा  है
बातों बातों में यहाँ कई चुनाव लडे गए कई जीते गए पर इस बार वाला चुनाव बड़ा दिलचस्प है।  हर रोज अख़बारों में बड़ी गजब सुर्खिया होती है, 'मैं  भी चौकीदार'[। ''चौकीदार चोर है''। ''एक ही चौकीदार चोर है बाकी सब ईमानदार''।
सोशल मीडिया का तो पूरा पारिद्रश्य ही अलग है।
काफी दिलचस्प चुनाव होने जा रहा है ये, मुद्दा ये है क्या आने वाले समय में अब चुनाव ऐसे ही होंगे , बड़ा दिलचस्प होगा अगर ऐसे ही होंगे।
हर तरह के मीडिया में बातें बोहत ज्यादा हो रही है
मीडिया को छोड़ भी दे तो परिवार, पड़ोस , मित्र मंडली इन में भी काफी ज्यादा बाते  हो रही है।जैसे लोग खाली बैठे है। ये आई पी एल ने थोडा ध्यान भटका दिया। आइ पी एल की बात अगली बार करेंगे।
अभी तो  ये चुनाव ही बहुत बडा उत्सव है हमारे लिए।
सोशल मीडिया ने तो पूरी संचार व्यवस्था को ही नए आयाम दे दिए है जिसके जो दिल में आये  खुल के बोल दो।
में भी तो देखो बातों बातों में कहा तक आ गया।
समस्या ये है की ज्यादा बातें मरने वाले को फिर लोग लातें मरते है,  तो भैया बस अब बोहत हो गया।
शुभरात्रि। शब्बा खैर। राम राम।सत श्री अकाल।

Sunday, March 17, 2019

कुर्सी

शुक्रवार सुबह  सात बजे  में बठिंडा से हिसार की ट्रेन मे बैठा । सामान्य श्रेणी वार्ड था,  उस वक्त डिब्बे मे एक ही आदमी था।जैसे ही मै उसके बगल मे बेठा, उसने अजीब तरीके से देखा, उसे लगा शायद अब उसका सब सीटों पर जो एकाधिकार है वो खत्म हो जाएगा।
जैसे जैसे लोग बढ रहे थे उन महाशय की भोहें तन रही थी। मै बङे गौर से देख रहा था, इतने में एक महिला ओर पुरूष डिब्बे में आये पर कोई भी सीट खाली नही है, महिला अपने साथी सें कह रही थी मुझे कोई सीट दिलाओ उन दोनो ने आगे ओर पिछे दोनो ङिब्बों मे देखा पर कही कोई सीट नही। शायद महिला ने फिर से पुछा की किसी से बात करो सीट के बारे में, व्यक्ति चिल्लाया तुम्हे बैठना है तो तुम पुछ लो किसी से।
मैं ऊठा और अपनी सीट उस महिला को दे दी।
ट्रेन मे ही नही हमारे महान भारत मे सब जगह एसा ही है।
सीट चाहे बस की हो या किसी मंत्री की एक बार मिल गई तो इंसान उससे टस से मस नही होता। इंसान की फितरत ही एसी है, बस अपने लिए जगह चाहिए फिर किसी को गिराना भी पङे तो इंसान को कोई गुरेज नही।
इतिहास गवाह है इस कुर्सी के लिए बेटे ने बाप का ओर भाई ने भाइ का कत्ल किया है। पर ये कुर्सी कभी किसी की नही हुई।
शायद यही खासियत है कुर्सी की, बेवफा होकर  भी जनता से वफा करती हेै।
जिस दिन ये किसी एक से वफा कर लेगी  तो  वो गुलामी का मंजर खतरनाक होगा।।
कुर्सी का नशा ही कुछ ऐसा है बङे बङो की जात बदल जाती है।
पर फिर कुर्सी भी अपनी जात दिखाती हेै
देश मे जितने भी लोग इस कुर्सी पर बैठे अगर उन मे से किसी एक ने भी अगर अपने इमान से काम किया होता तो आज मंजर कुछ और होता।
पिछले कुछ वर्षो मे मैने भी एक दो चुनाव देखे ओर ये पाया की जनता ने जिससे भी उम्मीद लगाई उसीने जनता की बैंड बजाई।
मगर फिर जनता भी अच्छे से बजाती है।
अब सवाल ये हे हम कब तक एक दूसरे को बजाते रहेंगे
अब वक्त आ गया है एक दुसरे को सुनने का।

Monday, March 11, 2019

सनसनी ओर सन्नाटा


समाचार चैनल (ब्राडकास्ट मिडियम) की सबसे बङी मजबूरी ये हो गई है कि साधारण समाचार सुनने ओर देखने मे लोगो की दिलचस्पी नही रही।
आजकल हर अखबार ओर चैनल सनसनी की तलाश मे रहता है। बदकिस्मती सें अगर कोई वाकया हो गया तो बस  बन गया काम।अखबारो ओर चैनलो के साथ जनता का वक्त भी अच्छा बीत जाता है। सनसनी खत्म तो पङोसी भी पुछ  लेता है,  इतना सन्नाटा क्यों है भाई।
सब तमाशबीन है, किसी भी घटना या वाकये को उत्सव की तरह लेते है । जब उत्साह खत्म तो डब्बा गुल।
कभी सनसनी मिल जाती है तो कभी सनसनी बनानी पङती है।कभी राफेल को उठाया जाता है, तो कभी राफेल के कागजात।
हमारे एक युवा नेता तो रोज एक नई सनसनी ले आते है, ये आजकल इतनी खबरे बना रहे हे की समाचार एजेंसिया भी इनके सामने कुछ नही। नेता तो नेता अब तो अभिनेता भी पैसे लेकर खबरे बना रहे है। जनता को अब इस मसाले की आदत इस कदर हो गई है कि जब तक  वो कोई डिबेट शो नही देख लेते, जिसमे ऐंकर ओर मेहमान एक दुसरे को गालिया दे रहे हो, खाना नही पचता। अगर ये पत्रकारिता है तो , फिर पत्रकारिता क्या है ?

Thursday, March 7, 2019

शुक्रिया जिंदगी

महिलाऐं, जिस तरह एक माॅ, बहन, बीवी ओर बेटी के रुप में सबपे अपना स्नेह लुटाती है। उसको सिर्फ चंद अलफाज में बयां करना नामुमकिन है। फिर भी मै कोशिश करूंगा। जितनी भी महिलाओं से में अब तक मिला हुॅ , या जिनको जानता हूँ, वो मुझसे बङे ही प्यार सें पेश आते है। मैंने अपनी माॅॅ को एक दशक सें नही देखा, तेरह साल पहले वो इस दुनिया से चली गई थी, लेकिन जब तक मै जिंदा हू उनकी यादे मेरे जेहन सें धुंधली नही हो सकती।
हालांकि मेरे घर ओर परिवार मे ओर भी महिलाऐ है, जिनसे खूब स्नेह मिला, दो भाभी हैं, उनकी दो बेटियां हैं, जो मुझे बेहद अजीज हैै।जिंदगी मे कुछ ओर भी महिलाओ सें नि:स्वार्थ स्नेह मिला। इन सभी महिलाओ के प्रति मे हमेशा कर्जदार रहूंगा।
ऑश्चर्य होता है ओरत के दामन मे इतना प्यार आता कहां से है। शायद उपरवाले ने ओरत के दामन को महासागर (समुद्र) से ज्यादा प्यार अपने अंदर वहन करने की ताकत दी है।
एक ओरत ही ऐसा कर सकती है।

सबको अन्तर्राष्ट्रिय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

Wednesday, March 6, 2019

जनसंचार द्वन्द

देश में जनसंचार के माध्यम  (मीडिया) इस वक़्त जिस तरह का काम कर रहे हैं।
जिस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे है वो तो एक अलग मुद्दा है उसके बारे में सब को पता है कि मीडिया किस तरह का काम कर रहा है।
 दूसरे को दोष देना और वही काम खुद भी किये जाना अपने आप में एक बहुत बङी कला है, ओर काबिल ए तारीफ है, और पत्रकारिता में इस वक़्त यह एक नयी  लत बन गया है।
कौन चोर है कौन  ईमानदार है, बस एक दुसरे पर आरोप लगाते रहो। पत्रकारिता में हाल ही में बहुत से ऐसे मंच आ गए है जो वेब आधारित है, और खुद को आत्मनिर्भर और ईमानदार कहते है, और जनता से आर्थिक मदद भी मांग रहे है।
पर क्या हम इनकी ईमानदारी पर पूरी तरह विश्वास कर सकते है ? यह एक बड़ा सवाल है।
इन नए आत्मनिर्भर जनसंचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तो वही है, जो पहले संचार चैनलो और अखबारों  से जुड़े हुए थे, वो कोई मंगल गृह से तो आये  नहीं है।
हाल ही में द वायर ने रवीश कुमार के साथ वर्तमान पत्रकारिता पर  हुई  एक चर्चा दिखाई जिसमें रवीश कुमार एक तरह से जनता के दिलो दिमाग में एक राय बनाते  नजर आये।
रवीश ने  पत्रकारों  पर गंभीर सवाल उठाये और मौजूदा राजनीतिक हालात पे भी बात की , जिसमे सब दूसरे पत्रकारों और चैनलों को उन्होंने किसी राजनितिक विचार धारा और किसी व्यक्ति विशेष का समर्थक बताया, जो सरकार और राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा को लोगो के दिमाग में डाल रहे है।
रवीश कुमार के हिसाब से सिर्फ दो चार पत्रकार और जनसंचार माध्यम ही सच्ची पत्रकारिता  कर रहे है।
अगर आपको अंगूर नहीं मिले तो अंगूर खट्टे है ये तो वही  बात हो गई।
रवीश ये भूल गए शायद की जिस मीडिया हाउस से वो जुड़े हुए है उसके जरिये वो भी जनता के बीच रोज रात को अपनी और अपने चैनल की विचारधार जनता के दिमाग में डालते है वो भी रिपोर्टिंग नहीं प्रोपोगैंडा है।जिस यकीन और आत्मविश्वाश से रवीश अपने विचार जनता से साझा करते है की दर्शक  के पास यकीन करने के आलावा दूसरा रास्ता ही नही होता।
शायद उनके पास कोई यन्त्र है जिससे झूठ और सच को मापा जा सकता है।
बेशक अभी पत्रकारिता जगत के जो माजूदा हालत है , पत्रकारों की चिंतन करने की जरूरत है, की वो इस पैशे में  किसलिए आये  है और क्या कर रहे।
रवीश कुमार और उनके मीडिया हाउस को भी पत्रकारिता का पाठ  फिर से पढ़ने की जरूरत है।




Sunday, March 3, 2019

स्त्री ओर संघर्ष

किसी भी समाज में औरत का जो स्थान है वो लगभग एक जैसा है फिर चाहे भारत में हो या अमेरिका या इंग्लैंड सब जगह औरत के लिए एक जैसी व्यवस्था है।
हालाँकि अब वक़्त  बदल गया है पर फिर भी सोच नहीं बदली है।
अब भी लोग लड़कियों को स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक स्तर पे कमजोर आंकते है। 
और बहुत से मानवीय हकों से उन्हें दूर रखा जाता है 
विदेशी समाज तो मैंने सिनेमा और साहित्य की आँखों से देखा है पर भारतीय समाज मैंने अपनी खुद की आँखों से देखा है। 
और भारतीय  समाज  में स्त्री का जो स्थान है वो किसी से छुपा नहीं है।
ये अजीब  विडम्बना है की जिस समाज में माँ दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजा जाता है उसी समाज में जीती जागती स्त्री, जिसके बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है वो कमजोर और लाचार है।
ये कमजोरी और लाचारी उसके मन में किस तरह घर कर गई ये समझना कोई बहुत बड़ा तकनिकी विज्ञान नहीं है ।
पीढ़ियों से औरत जुल्म सहती आ रही है  और मर्द का उस पे अधिकार रहा है कभी भाई  के रूप में कभी बाप के रूप में तो कभी पति के रूप में ।
मायके में उसको परायी अमानत समझा जाता है जिसके जवान होते ही माँ बाप उसको किसी के पल्ले  बांधकर अपना पल्ला झाड़ना चाहते है ।
ससुराल में भी उसे परायी जाई का दर्जा प्राप्त होता है  पति महाशय सोचते है की पत्नी उनकी  जायदाद है और  वो जैसा चाहे सुलूक उसके साथ कर सकते है, वो इधर काम करते करते मर जाने के लिए आयी है।
और औरत के मन में भी पीढ़ियों से ये बात घर कर गई है की मर्द पीटता है तो ठीक है वो उसका रखवाला  है उसके बिना उसका कोई ठिकाना नहीं है ।और ये बात उसके दिमाग में शादी के बाद उसकी विदाई के वक़्त ही डाल  दी जाती है की अब उस  घर से तेरी अर्थी ही जाएगी ।
पीढ़ियों से हमारे सम्माज में शादियां इतनी कम उम्र  में होती आयी है उस वक़्त अपने हक़  और अधिकारों के लिए लड़ना तो दूर खाने-पीने ओर पहनने का तक का होश नहीं होता था।
और कुछ लोगों की शादियां तो उनके जन्म के पहले ही तय हो जाती थी।
इन सब के पीछे हमारा जो पुरुष प्रधान समाज है उसकी सोच होती है की औरत को उसके समझदार  होने से पहले ही जिम्मेदारियों  के बोझ के नीचे दबा दो ताकि उसको सवाल करने का वक़्त ही ना मिले।  
हालाँकि अभी चीजे काफी बदल गई है लड़किया अपने हक़ और अधिकारों के बारे में पूछ रही है और उन्हें उनका हक मिल भी रहा है। लेकिन एक चीज का और बदलना जरूरी है औरत के प्रति समाज की जो सोच है वो अभी तक बदली नहीं है। 
अभी भी औरतो के साथ ज्यादती हो रही है अभी हाल ही में चर्चित हुआ 'मी टू' मूवमेंट  इसका बहुत बड़ा उदहारण है।और इस मी टू आंदोलन का जन्म  अमेरिका में हुआ ये बड़ी हैरान करने वाली बात है, क्यों की अमेरिका के समाज को एक परिपक़्व समाज माना जाता है, पर औरत की समस्या वही है, उधर भी औरत को इंसान नहीं समझा जाता जानवर के जैसा  सुलूक किया जाता  है। 
औरत पे हक़ जमाना और उसके साथ जबरदस्ती करना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
फिर भी औरत का संघर्ष जारी है  ऐसी कई महिलाओं को मैं जानता हु और उनका संघर्ष मैंने बहुत करीब से देखा है, वे घर सँभालने के साथ साथ घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी भी करती है। 
 जिनके पतियों ने या तो उनका साथ छोड़ दिया या शराब में डूब गए। 
 औरत ने ऐसे पतियों का भी पेट पाला। औरत का संघर्ष कभी ख़त्म नहीं होता क्योंकि इस जीवन संघर्ष में जिन बच्चों की परवरिश उसने की है, जो अभी बड़े हो गए है, उन बच्चों की सोच भी उसी समाज के जैसी है, लेकिन फिर भी औरत का जो साहस होता है जिंदगी की मुसीबतों से लड़ने का, जिन्दा रहने का वो बड़ा ही काबिले तारीफ है।
कुछ पुरानी  हिंदी फिल्मे है जो औरत की इस संघर्ष को दर्शाती है जैसे मदर इंडिया, मिर्च मसाला, राम तेरी गंगा मैली ओर अस्तित्व।ऋषि कपूर ओर पदमिनी कोल्हापुरी अभीनीत फिल्म प्रेम रोग ने काफी अच्छी तरह उंच नीच ओर स्त्री पर होने वाले जुल्म दर्शाती है।  नई फिल्मो में पिंक, लिपिस्टिक अंडर माय बुरका और पार्च्ड इत्यादि मे स्त्री के आज के मुद्दो ओर समस्याओ को दिखाया गया है।
औरत जितनी शक्ति और साहस के साथ परिस्थितियों का सामना करती है की ऐसा करना मर्द के बस की बात ही नहीं है निचित तौर पे शारीरिक और मानसिक  तोर पे एक स्त्री का सामर्थ्य पुरुष से की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। और आज की औरत अपना दर्जा अपने अधिकार वापस लेना अच्छी तरह जानती है।
 अब अगर औरत को उसके हक़ अधिकारों से वंचित रखा गया तो औरत अपने सारे हक़ अधिकार इस समाज से छीन लेगी  क्यों की जब औरतअपनी पे आती है तो विकराल रूप धारण कर लेती है काली  बन जाती है  वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं है। 

Friday, March 1, 2019

एक ही रास्ता

पाकिस्तान अपनी धूर्तता की वजह से जाना जाता रहा है। मगर पाकिस्तान के वजीरे ऐ आजम अभी जिस तरह से व्यवहार कर रहे है वो बड़ा आश्चर्य जनक है। सोशल मीडिया और मुख्या धारा के मीडिया में जिस तरह के वीडियो आ रहे है उसमे इमरान खान ने कहा है की वो दहशतगर्दी पे भी बात करने को तैयार है।
मेरे ख़याल से ये पाकिस्तान का डर  भी है और ये पाकिस्तान की चाल भी है।
इमरान खान अब एक अलग तरह की रणनीति पे काम कर रहा है।
वो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बदलना चाहता है चीन समेत कोई भी पाकिस्तान समर्थक देश खुलकर पाकिस्तान की मदद करने को तैयार नहीं है ।क्योंकि पाकिस्तान के मुखोटे के पीछे जो दह्सतगर्दी है उससे सब वाकिफ है ।
जब से इमरान खान ने सत्ता संभाली है जब भी वो बोलता है तो भारत के साथ अपने सम्बन्ध सुधारने की बात करता है, एक नए पाकिस्तान की बात करता है, तरक्की की बात करता है दहशतगर्दी  को ख़तम करने की बात करता है ये एक प्रोपागैंडा भी हो सकता है और उसकी मजबूरी भी हो सकती है। शायद पकिस्तान को ये समझ आआ गया है की तरक्की पसंद मुल्क को दहशतगर्दी से कोई फायदा नहीं है
इमरान खान ने कहा भी है की अब उसकी जमीन दहशतगर्दी के लिए इस्तेमाल  नहीं होगी ।
पुलवामा हमले को लेकर इमरान खान ने कहा है कि हम हमले की तहकीकात मे मदद करेंगे अगर भारत इस हमले की तहकीकात करना चाहता है ।
अब ये पाकिस्तान का डर है मजबुरी है या कोई नई चाल ये तो वक्त बताएगा।
पर भारत सरकार इसमे अपरिपक्वता दिखा रही है
जिससे भारत की विश्व मे जो छवि है उसे नुकसान पहुंच सकता है।
पाकिस्तान शांति वार्ता की मिन्नते कर रहा है
भारत को यह प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए।
अगर इस बार भी पाकिस्तान ने धोखा किया तो अंतराष्ट्रिय स्तर पर उसकी छवि पर दहशतगर्दी का धब्बा गहरा हो जाऐगा।
कही से भी उसको आथिर्क मदद नही मिलेगी।
इस बार पाकिस्तान के सारे रास्ते बंद है।
इस लिए पाकिस्तान ये बातचीत का रास्ता अख्तियार करने की सोच रहा है।
अगर ये हो जाता है तो दोनो मुल्को के लिए अच्छा है।
अब होता क्या है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।

The Business of News


The Business of News


There is a huge quantity of mass media channels and mediums in India.  Journalism and Mass Communication is taught by around nine hundred universities and thousands of colleges in India.
The first institute to provide formal education in the field of mass communication and journalism is the Indian Institute of Mass Communication (IIMC) located in JNU Campus; it was set up by the Government of India in 1965.
After fifty-three years of education in this field, quality journalism is under a question mark. And some of the Indian Journalist studied journalism from foreign Journalism Schools, Such as Columbia Journalism School, and Missouri Journalism School and other reputed journalism Schools. But are they really made effort to improve the quality and ethics in journalism and mass communication?
We can understand that for 24-hour news broadcasting it is not possible for the media to maintain the quality of content. But it is not journalism that you are doing, you have to make it possible because you are in the business of news, and you have to design a proper strategy for selecting news stories and the quality of content that you are serving to the public.
Mass media always forms public opinion, so Indian broadcasting media have to be very fair. What media serving to the people it would go in the deep in the mind of the public, so it is very necessary to improve the quality of content?
Last five-six days we have seen the quality of content on Indian news channels and this happens all the times when any big event and issues happen. This situation is the same since 24-hour news broadcasting started.
Broadcasting media have to decide that what you are doing Journalism or Entertainment. If you want to entertain people gain the TRP you can go for directly shift in music and movie industry. You can't mix two different professions. If anybody has financial resources and good ideas than pure entertainment industry (music and movies) is the best and suitable business.
Journalism has its own objectivity and ethics. Please don't change the meaning of Journalism.



Wednesday, February 27, 2019

भावनाओं को समझो

 भारत एक भावनाओं में बह जाने वाला देश है यहाँ की जनता दिल से सोचती है।
 और उसके दिल  में एक उतावलापन है यहाँ की जनता और यहाँ के राजनेता दोनों का मन एक जैसा है दोनों को जल्दी है।
 बहुत जल्दी यहाँ  लोग अपनी बना लेते है और बदल देते है । कभी सरकार को गालिया देने लगते है कभी सरकार  बधाइयाँ देने लगते है । हाल ही में जो भारत सरकार  ने पाकिस्तान को जो जवाब दिया वो बोहत जल्दी में किया हुआ काम है
वो एक जवाब ही था अब एक बार वो जवाब देंगे फिर हम ।दोनों मुल्क ही इसके स्थाई समाधान को नजरअंदाज कर रहे है। जनता को बेवकूफ समझने की गलती कर रहे है ये।
 जनता को जवाब नहीं इस समस्या का हल चाहिए अफ़सोस तो इस का है की जनता को भी गुमराह किया जा रहा है । जनता का जो हित है उससे  उसका ध्यान भटकाया जा रहा है।
जनता जो सोशल मीडिया पे  संचार में भाग ले रही है वो अच्छा है। मगर हर बात पे सरकार को गालिया देना हर बात पे बधाईयाँ देना ठीक नहीं है हमें सरकार को  काम करने देना चाहिए और हमें खुद भी काम करना चाहिए।
बोहत ज्यादा संचार भी कई बार ज्यादा घी की तरह खाना ख़राब कर देता है तो हर इंसान को अपनी हद समझनी चाहिए।
 भारत हमेशा एक परिपक़्व सोच वाला देश रहा है पर अब सरकार की सोच में वो परिपक़्वता और दूरदर्शिता नजर नहीं आती। जब किसी बीमारी को जड़ से ख़तम करना है तो शोर्टकट से काम नहीं चलता । हमें इस समस्या से हमेशा के लिए निजात चाहिए अभी इन्होने जवाब दे दिया हे हो गया इनका काम पूरा।
पाकिस्तान धूर्त भी है और चालक भी है वो इस माहौल का पूरा फायदा उठाएगा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वो सहानुभति प्राप्त करने की कोशिश करेगा वो कहेगा की हम तो बातचीत से मुद्दा सुलझाना चाहते है पर भारत जंग चाहता है।
  हालाँकि पाकिस्तान ने हमेशा शांति के नाम पे धोखा दिया है मगर फिर भी में  ये समझता हु की शांति चैन और अमन की बात को किसी भी कीमत पे एक मौका दिया जाना चाहिए।
जब सामने वाला शांति की बात कर रहा है तो हमें ये मौका गंवाना नहीं चाहिए। जंग की शुरुआत तो आसान है मगर कहा ख़तम होगी कैसे होगी कब होगी इसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है। आखिर में बातचीत ही हर मुद्दे का हल है। जो इंसान गुड़ खा के मर जाये उसे जहर देने की जरूरत ही नहीं है ।

Friday, February 22, 2019

जंगलराज

ये बड़े ही आश्चर्य की बात है की इतने सालों की आजादी के बाद भी हम आतंकवाद से आजाद नहीं हो पाए है।
सरकारे आती  है जाती है पर आतंकवाद के मुद्दे का कोई हल कर पाने में हर सरकार  अभी तक नाकाम रही है।
माना  की आतंकवाद का मुद्दा हर देश  के लिए सिरदर्द बना हुआ है।
पर देश की आवाम से देश की जनता से झूठ बोलना कहा तक सही है, सरकार  के नुमाइंदे बोलते  है देश के दुश्मनो को बक्शा नहीं जायेगा, बोहत सुन लिया भैया वो दिन कब आएगा ये बतलाइये।
ये  फालतू के भाषण  मत झाड़िये कान पक्क  गए है  लोगो को कुछ कर के दिखाए।
अगर आप में कुछ करने की ताकत नहीं है तो सिर्फ वोट की राजनीती के चक्कर में लोगो को गुमराह करना ठीक नहीं है।
क्यों नहीं ये लोग (वर्तमान सरकार )  कश्मीर के मुद्दे पे बात करते । कब तक ये लोग इसी तरह लोगो की बलि देते रहेंगे।
कश्मीर के हालात किसी से छुपे नहीं है , वहा पे भारतीय आर्मी लोगो के साथ जो सुलूक कर रही वो भी किसी से छुपा नहीं है।
यही  कारण है की कश्मीरी युवको में रोष बढ़ रहा है
उन  लोगो को इतना डराया गया है की उनका मौत का डर  ही निकल गया है।
और हाल ही में जो आतंकवादी हमला हुआ  उससे तो हालत और ख़राब हो गए है।
देशभर में कश्मीरी लोगों पे हमले हो रहे है , देश के अलग अलग हिस्सों से कश्मीरी युवकों को निकाला ला जा रहा है।
ये बोहत ही गंभीर हालात है इससे हालात ज्यादा बिगड़ेंगे सुधरेंगे नहीं।
सबसे हैरान करने वाली बात ये है की वर्तमान में जो लोग सरकार चला रहे है। वो इस मुद्दे पे कुछ बोल नहीं रहे लोगों से अपील  भी नहीं कर रहे है की आप लोग शांति बनाये रखे हम इस मुद्दे को देख रहे है।
 एक तरफ आप को कश्मीर चाहिए और दूसरी तरफ आप वहा  शांति व्यवस्था बनाने में नाकामयाब है ।और अब तो हालात बाद से बदतर होते जा रहे है
सरकार क्या कर रही है कुछ समझ नहीं आ रहा है।
यहाँ सब अपनी अपनी रोटीया सेंकने में लगे हुए है।  सरकार को चाहिए की पडोसी देश से बात करे उसके क्या मुद्दे है उसको क्या चाहिए एक न एक दिन ये मुद्दा सुलझाना ही पड़ेगा। आमने सामने बैठ कर के हर चीज पे बात करनी चाहिए जिससे दोनों मुल्को में अमन कायम हो सके जनता चैन और सुकून से रह सके ।

Sunday, February 17, 2019

धर्म और आतंकवाद

देश में धर्म को लेकर जो खेल चल रहा है, उससे सब भली भांति वाकिफ है।
मुस्लमान है तो जरुर उसे आतंकवादी समझा जायेगा फिर वो उसकी सचाई कुछ भी हो।
ये जो आतंकवादी हमले हो रहे ये भी एक तरह से इसी तरह की घृणा का फायदा उठा के किये जा रहे हे।
कही न कही मुस्लिम युवको में रोष है की हम कुछ करे या न करे नाम हमारा ही होगा।
हमें इस चीज  को बदलना होगा , मुसलमानो का जो सम्मान और आत्मविस्वाश है वो उन्हें लौटाना होगा।
अगर हिंदुस्तान जैसे देश में इस तरह की विसंगततियाँ होंगी तो जिम्मेदार हिंदुस्तान ही होगा
हिन्दोस्तान अपनी विविधता में एकता के लिए जाना  जाता है।
सब धर्मों  के लोगो को बराबरी का अधिकार होना ही चाहिए।
यह हम एक पशु को किसी इंशानी जिंदगी से बड़ा बना देते है।
उसकी पीट पीट कर के हत्या कर देते है।
ये इंसानियत  लोगो में कब आएगी की वो एक इन्सान  की जिंदगी की कदर कर सके।
जिस दिन ये इंसानियत आ गई बोहत झगड़े फसाद, आतंकवाद ख़तम हो जायेंगे ।

Friday, February 8, 2019

जनतंत्र ओर जनसंचार

आज देश में लोकतंत्र को लेके जो माहोल बना हुआ है उसका जिम्मेदार कौन है।
वो जनता जो अपने प्रतिनिधि का सही आकलन नही कर पाती। या जनता द्वारा चुने गये  वो प्रतिनिधि जो चुनाव से पूर्व किये गये वादे पूरा करने मे नाकाम रहते है।
या जिम्मेदार हें जनसंचार के वो माध्यम (मीडिया) जो रातोंरात किसी एरे गैरे नत्थूखैरे को राजनीति के आसमान का सितारा बना देते हैं। कुछ साल पहले कुछ लोग राजनीति मे आऐ भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए । सत्ता मे आने के बाद खुद उनहोंने भ्रष्टाचार करने के नये किर्तीमान स्थापित किए। बहुत से लोगो ने करोङो  की विदेशी नोकरी छोङ कर इस राजनीतिक दल के साथ जुड गए।
जनसंचार के माध्यम अभी बहोत से नए राजनितिक चेहरों का निर्माण करने मे जुटे हुए है। वो चेहरे है आरक्षण आंदोलनों ओर विश्वविधालयो मे बयानबाजी करने वाले युवा नेता जो सता मे आने के पहले जनहित की बात करते है फिर अपना हित निकालते है।
सोशल नेटवर्किंग साइट के माध्यम से जनता भी इनको नायक बना देती है।
देखते देखते ये लोगो के दिलो दिमाग पर छा जाते हे। फिर राजनीति के गलियारे से होते हुये लोग सता मे आ जाते है। राजनीति अभी बहुत अच्छा विकल्प माना जाता है। खासकर अभिनय जगत से जुडे हुए लोगो के लिए।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्मृति इरानी है।
हाल ही मे दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित अभिनेता कमल हासन ने राजनीति मे प्रवेश किया है। रजनीकांत ने भी अपना मन बना रखा है।
लोग इनसे बदलाव की उम्मीद कर रहे है।
लेकिन जनता को अब इस कदर धोखा खाने की आदत हो गई है की अब उनको धोखा अच्छा लगने लगा है।
जनसंचार के माध्यम भी अभी जनता के हित में काम नही कर रहे है। सब किसी ना किसी के पक्ष मे है। सिनेमा ने भी अब पक्षपात वाला रवैया अपना लिया है। हाल ही मे रिलीज हुई कुछ फिल्मे इसका ताजा उदाहरण है। अब जिसकी लाठी उसकी भैंस।

Wednesday, January 23, 2019

The Social Collaboration


Cinema is a very creative field, or it should be because people like that in cinema. In present time there is a heavily influence of contemporary social and political issues or movement in films. This is a creative development in Indian Cinema that cinema is being made based on real issues. Such as new releases Accidental Prime Minister, and upcoming Thackeray movie. This is era of creative people in every sector. The time is shaping our social behaviour and our thinking every day. There are various social political and economic issues happening in our society. In upcoming days there will be movies based on me too movement because it became a revolution in India. It needs deep investigation if somebody wants to make movie on this. Filmmaker like Madhur Bhandarkar can do this. Or there are many other talented filmmakers in India. But it not should be one sided. The upcoming scenario of watching cinema would very interesting. When i watched Sanju movie it was awesome. Before watching I can’t imagine that. And we have some other charismatic personalities to portray on cinema like Narendra Modi, Arvind Kejriwal. It would be great to watching movie of different genre in upcoming time. Because we have very talented and versatile artist in Indian Cinema.  Ayushman Khurrana is like new Amol Palekar, Rajkumar Rao, Vicky Kaushal, Bhumi Pednekar, and many other artists we have. This would be era of fresh content.  


Saturday, January 12, 2019

The Great Indian Politics

Every time Indian Politics has a stage of uncertainty but things hadn't goes  worst like this. People have been tried to confuse and fool by the government. It's clear that government doing it very well and play with emotions of the people they voted him. It is my personal opinion it can be untrue or PM needs some more time, but people don't have a passion to wait a long. the economic conditions of people become worst than ever after currency note ban and GST.
This is the right time for other political parties and politicians to propagate her ideologies and influence the public to choose them. The latest example is, SP or BSP coalition. The biggest Problem of India is that our leader thinks only about Power and how to use it for their personal development, not in Public Interest. The latest example is Akhilesh Mayawati statement and reply of Mr. Modi prove their immaturity. The person holds Prime Minister chair not to suppose to reply on every statement from anybody. Media also should think about the interest of public. It can be impossible for media to unbias reporting because of many reasons. Media is in the hands of corporates. Media is no more for public service, But public has the power to recognized the reality. People need to be Media literate. They need to make their opinion or decision without influencing from any third Party. they have to understand what is right or what is wrong.

Kailash Bhagat

मेंटल ही है

कंगना रानोत की आगामी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के काफी चर्चे है। हिंदी फिल्म  'गैंगस्टर' सें अपने अभिनय की शुरूआत करने वाली इस...

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