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Sunday, March 3, 2019

स्त्री ओर संघर्ष

किसी भी समाज में औरत का जो स्थान है वो लगभग एक जैसा है फिर चाहे भारत में हो या अमेरिका या इंग्लैंड सब जगह औरत के लिए एक जैसी व्यवस्था है।
हालाँकि अब वक़्त  बदल गया है पर फिर भी सोच नहीं बदली है।
अब भी लोग लड़कियों को स्त्रियों को शारीरिक और मानसिक स्तर पे कमजोर आंकते है। 
और बहुत से मानवीय हकों से उन्हें दूर रखा जाता है 
विदेशी समाज तो मैंने सिनेमा और साहित्य की आँखों से देखा है पर भारतीय समाज मैंने अपनी खुद की आँखों से देखा है। 
और भारतीय  समाज  में स्त्री का जो स्थान है वो किसी से छुपा नहीं है।
ये अजीब  विडम्बना है की जिस समाज में माँ दुर्गा को शक्ति के रूप में पूजा जाता है उसी समाज में जीती जागती स्त्री, जिसके बिना जीवन का अस्तित्व नहीं है वो कमजोर और लाचार है।
ये कमजोरी और लाचारी उसके मन में किस तरह घर कर गई ये समझना कोई बहुत बड़ा तकनिकी विज्ञान नहीं है ।
पीढ़ियों से औरत जुल्म सहती आ रही है  और मर्द का उस पे अधिकार रहा है कभी भाई  के रूप में कभी बाप के रूप में तो कभी पति के रूप में ।
मायके में उसको परायी अमानत समझा जाता है जिसके जवान होते ही माँ बाप उसको किसी के पल्ले  बांधकर अपना पल्ला झाड़ना चाहते है ।
ससुराल में भी उसे परायी जाई का दर्जा प्राप्त होता है  पति महाशय सोचते है की पत्नी उनकी  जायदाद है और  वो जैसा चाहे सुलूक उसके साथ कर सकते है, वो इधर काम करते करते मर जाने के लिए आयी है।
और औरत के मन में भी पीढ़ियों से ये बात घर कर गई है की मर्द पीटता है तो ठीक है वो उसका रखवाला  है उसके बिना उसका कोई ठिकाना नहीं है ।और ये बात उसके दिमाग में शादी के बाद उसकी विदाई के वक़्त ही डाल  दी जाती है की अब उस  घर से तेरी अर्थी ही जाएगी ।
पीढ़ियों से हमारे सम्माज में शादियां इतनी कम उम्र  में होती आयी है उस वक़्त अपने हक़  और अधिकारों के लिए लड़ना तो दूर खाने-पीने ओर पहनने का तक का होश नहीं होता था।
और कुछ लोगों की शादियां तो उनके जन्म के पहले ही तय हो जाती थी।
इन सब के पीछे हमारा जो पुरुष प्रधान समाज है उसकी सोच होती है की औरत को उसके समझदार  होने से पहले ही जिम्मेदारियों  के बोझ के नीचे दबा दो ताकि उसको सवाल करने का वक़्त ही ना मिले।  
हालाँकि अभी चीजे काफी बदल गई है लड़किया अपने हक़ और अधिकारों के बारे में पूछ रही है और उन्हें उनका हक मिल भी रहा है। लेकिन एक चीज का और बदलना जरूरी है औरत के प्रति समाज की जो सोच है वो अभी तक बदली नहीं है। 
अभी भी औरतो के साथ ज्यादती हो रही है अभी हाल ही में चर्चित हुआ 'मी टू' मूवमेंट  इसका बहुत बड़ा उदहारण है।और इस मी टू आंदोलन का जन्म  अमेरिका में हुआ ये बड़ी हैरान करने वाली बात है, क्यों की अमेरिका के समाज को एक परिपक़्व समाज माना जाता है, पर औरत की समस्या वही है, उधर भी औरत को इंसान नहीं समझा जाता जानवर के जैसा  सुलूक किया जाता  है। 
औरत पे हक़ जमाना और उसके साथ जबरदस्ती करना पुरुष अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है।
फिर भी औरत का संघर्ष जारी है  ऐसी कई महिलाओं को मैं जानता हु और उनका संघर्ष मैंने बहुत करीब से देखा है, वे घर सँभालने के साथ साथ घर चलाने के लिए मेहनत मजदूरी भी करती है। 
 जिनके पतियों ने या तो उनका साथ छोड़ दिया या शराब में डूब गए। 
 औरत ने ऐसे पतियों का भी पेट पाला। औरत का संघर्ष कभी ख़त्म नहीं होता क्योंकि इस जीवन संघर्ष में जिन बच्चों की परवरिश उसने की है, जो अभी बड़े हो गए है, उन बच्चों की सोच भी उसी समाज के जैसी है, लेकिन फिर भी औरत का जो साहस होता है जिंदगी की मुसीबतों से लड़ने का, जिन्दा रहने का वो बड़ा ही काबिले तारीफ है।
कुछ पुरानी  हिंदी फिल्मे है जो औरत की इस संघर्ष को दर्शाती है जैसे मदर इंडिया, मिर्च मसाला, राम तेरी गंगा मैली ओर अस्तित्व।ऋषि कपूर ओर पदमिनी कोल्हापुरी अभीनीत फिल्म प्रेम रोग ने काफी अच्छी तरह उंच नीच ओर स्त्री पर होने वाले जुल्म दर्शाती है।  नई फिल्मो में पिंक, लिपिस्टिक अंडर माय बुरका और पार्च्ड इत्यादि मे स्त्री के आज के मुद्दो ओर समस्याओ को दिखाया गया है।
औरत जितनी शक्ति और साहस के साथ परिस्थितियों का सामना करती है की ऐसा करना मर्द के बस की बात ही नहीं है निचित तौर पे शारीरिक और मानसिक  तोर पे एक स्त्री का सामर्थ्य पुरुष से की तुलना में कहीं ज्यादा होता है। और आज की औरत अपना दर्जा अपने अधिकार वापस लेना अच्छी तरह जानती है।
 अब अगर औरत को उसके हक़ अधिकारों से वंचित रखा गया तो औरत अपने सारे हक़ अधिकार इस समाज से छीन लेगी  क्यों की जब औरतअपनी पे आती है तो विकराल रूप धारण कर लेती है काली  बन जाती है  वो दिन अब ज्यादा दूर नहीं है। 

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