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Saturday, March 30, 2019

बातों के भूत

हमारे महान देश भारत के लोग बड़े बातूनी होते है।
नवजात बच्चे से भी बात करने की उम्मीद की जाती है।
कुछ लोग तो ऐसे भी है जो बच्चे के जन्म के पहले ही उससे बात करना शुरू कर देते है।
महाभारत में भी अभिमन्यु ने माँ के पेट में ही बोहत कुछ सिख लिया था। अभी के नवजात बच्चे तो इतने ज्यादा बातूनी है की आश्चर्य होता है उन्हें सुनकर।
हैरान कर देने वाली बात है की ये बदलाव आया कैसे ?
कहा से इस नस्ल में इतनी बढ़िया चीजे अपने आप आ रही है ?
माँ के पेट से सीख के आ रहे है क्या ये सब कुछ, आइये आइये आजकल बातूनी लोगों की डिमांड भी बोहत है। हर नौकरी में संचार कौशल में निपुणता एक पात्रता मापदंड होता है।
लेकिन क्या सिर्फ बातों से गुजारा हो जाता है ? कुछ लोगो का हो जाता है।
मैंने कुछ ऐसे लोगो को करीब से देखा है जिन्होंने जिंदगी भर  सिर्फ बातें मारी है और अपनी सारी जिम्मेदारियां अपने सारे काम भी बातों बातों में निपटा दिए।
कुछ लोगों से जितनी चाहे बातें  करा लो वो थकते ही नहीं,  वो बात करने के इतने ज्यादा आदि होते है की एक बार शुरू हो गऐ तो बस फिर।  विश्वविद्याल्य  के पुस्तकालय  में भी वे किसी न किसी मुद्दे पे चर्चा करेंगे।हमारे हॉस्टल में तो कुछ लोग सिर्फ बातें मारने के लिए लाइब्रेरी आते है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर भी तो देखो बातों बातों में किस तरह वक़्त  का पता ही नहीं चलने दिया।
ओर अब एक बार फिर आपका टाइमपास करने का सोच रहे है।
अपनी अपनी प्रतिभा है कुछ  ही लोगों के पास होती है।
ये होता भी है कुछ लोग बातें बड़ी मजेदार करते है पर कुछ लोगों की बाते बड़ी बेस्वाद होती है।
जैसे हमारे एक संघर्षशील  युवा राजनेता राजनीति जिनके खून में होनी चाहिए थी मगर अब क्या करे अपना अपना हुनर  है।
हर किसी की बात में मजा आये जरुरी तो नहीं , मजा किसी का गुलाम नहीं साहब आये तो आये ना आए तो ना आए उसकी अपनी मर्जी है।
पर जनता को मजा चाहिए मजेदार बात करने वाले आजकल डिमांड में है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर देखो किस तरह बातो बातों में लोगों को अपना बना लेते है और कुछ करना भी नहीं पड़ता।
एक पुरानी  फिल्म भी है ''बातों बातों में'' अगर वक़्त हो तो देखना बातों बातों में फिल्म कब पूरी हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
वैसे ''मेरे  प्यारे प्राइम मिनिस्टर'' भी एक फिल्म है अभी अभी रिलीज़ हुइ  है मैंने देखी  नहीं है पर नाम अच्छा  है
बातों बातों में यहाँ कई चुनाव लडे गए कई जीते गए पर इस बार वाला चुनाव बड़ा दिलचस्प है।  हर रोज अख़बारों में बड़ी गजब सुर्खिया होती है, 'मैं  भी चौकीदार'[। ''चौकीदार चोर है''। ''एक ही चौकीदार चोर है बाकी सब ईमानदार''।
सोशल मीडिया का तो पूरा पारिद्रश्य ही अलग है।
काफी दिलचस्प चुनाव होने जा रहा है ये, मुद्दा ये है क्या आने वाले समय में अब चुनाव ऐसे ही होंगे , बड़ा दिलचस्प होगा अगर ऐसे ही होंगे।
हर तरह के मीडिया में बातें बोहत ज्यादा हो रही है
मीडिया को छोड़ भी दे तो परिवार, पड़ोस , मित्र मंडली इन में भी काफी ज्यादा बाते  हो रही है।जैसे लोग खाली बैठे है। ये आई पी एल ने थोडा ध्यान भटका दिया। आइ पी एल की बात अगली बार करेंगे।
अभी तो  ये चुनाव ही बहुत बडा उत्सव है हमारे लिए।
सोशल मीडिया ने तो पूरी संचार व्यवस्था को ही नए आयाम दे दिए है जिसके जो दिल में आये  खुल के बोल दो।
में भी तो देखो बातों बातों में कहा तक आ गया।
समस्या ये है की ज्यादा बातें मरने वाले को फिर लोग लातें मरते है,  तो भैया बस अब बोहत हो गया।
शुभरात्रि। शब्बा खैर। राम राम।सत श्री अकाल।

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