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Friday, February 8, 2019

जनतंत्र ओर जनसंचार

आज देश में लोकतंत्र को लेके जो माहोल बना हुआ है उसका जिम्मेदार कौन है।
वो जनता जो अपने प्रतिनिधि का सही आकलन नही कर पाती। या जनता द्वारा चुने गये  वो प्रतिनिधि जो चुनाव से पूर्व किये गये वादे पूरा करने मे नाकाम रहते है।
या जिम्मेदार हें जनसंचार के वो माध्यम (मीडिया) जो रातोंरात किसी एरे गैरे नत्थूखैरे को राजनीति के आसमान का सितारा बना देते हैं। कुछ साल पहले कुछ लोग राजनीति मे आऐ भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए । सत्ता मे आने के बाद खुद उनहोंने भ्रष्टाचार करने के नये किर्तीमान स्थापित किए। बहुत से लोगो ने करोङो  की विदेशी नोकरी छोङ कर इस राजनीतिक दल के साथ जुड गए।
जनसंचार के माध्यम अभी बहोत से नए राजनितिक चेहरों का निर्माण करने मे जुटे हुए है। वो चेहरे है आरक्षण आंदोलनों ओर विश्वविधालयो मे बयानबाजी करने वाले युवा नेता जो सता मे आने के पहले जनहित की बात करते है फिर अपना हित निकालते है।
सोशल नेटवर्किंग साइट के माध्यम से जनता भी इनको नायक बना देती है।
देखते देखते ये लोगो के दिलो दिमाग पर छा जाते हे। फिर राजनीति के गलियारे से होते हुये लोग सता मे आ जाते है। राजनीति अभी बहुत अच्छा विकल्प माना जाता है। खासकर अभिनय जगत से जुडे हुए लोगो के लिए।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्मृति इरानी है।
हाल ही मे दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित अभिनेता कमल हासन ने राजनीति मे प्रवेश किया है। रजनीकांत ने भी अपना मन बना रखा है।
लोग इनसे बदलाव की उम्मीद कर रहे है।
लेकिन जनता को अब इस कदर धोखा खाने की आदत हो गई है की अब उनको धोखा अच्छा लगने लगा है।
जनसंचार के माध्यम भी अभी जनता के हित में काम नही कर रहे है। सब किसी ना किसी के पक्ष मे है। सिनेमा ने भी अब पक्षपात वाला रवैया अपना लिया है। हाल ही मे रिलीज हुई कुछ फिल्मे इसका ताजा उदाहरण है। अब जिसकी लाठी उसकी भैंस।

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