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Thursday, July 11, 2019

मेंटल ही है

कंगना रानोत की आगामी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के काफी चर्चे है। हिंदी फिल्म  'गैंगस्टर' सें अपने अभिनय की शुरूआत करने वाली इस अभिनेत्री ने बेशक बहुत अच्छा काम किया है।
कंगना की अभिनय क्षमता पे शक नही किया जा सकता। मे तो ये कहना चाहूंगा कि वो अपना काम दो सौ प्रतिशत मेहनत के साथ करती है।
ओर इस बात का फायदा भी कंगना को मिला है। लोगों ने काफी पसंद किया है उन्हें। कंगना हिंदी फिल्मों की अब तक की सबसें मुहंफट सफल अभिनेत्री रही हे जो सबसे ज्यादा विवादों मे भी रही है। ओर ये आश्चर्यजनक है कि कंगना का हर नकारात्मक विवाद उसके फिल्मी कैरियर के लिय सकारात्मक साबित हुआ है।
हाल ही में एक पत्रकार के साथ हुआ कंगना का विवाद हर किसी की जुबान पर है। उससें कंगना की दो आगामी फिल्मो को बहुत बङा फायदा मिलने वाला है। कंगना की छवि को इन दोनों फिल्मों मे खूब भुनाया जाएगा। अब  सवाल यह है कि क्या कंगना जानबूझकर अपनी फिल्मों को हिट करवाने के लिए अपनी यह छवि बना रही है। अगर वास्तव में एसा है तो मैं कंगना को अपनी कोहनी तक हाथ जोङकर प्रणाम करना चाहूंगा। काम के प्रति इतना त्याग और जूनून ओर कहां मिलेगा आपको।

Thursday, July 4, 2019

Newsmaker of the Year: RaGa

Rahul Gandhi is making much news, since he lost the election. Even before the election he was very aggressive. His resignation grabs the attention of people. Since the last four - five days he holded the top position of the front page in all English and Hindi newspapers. He became the center of talk at all leading news channels. He is not quitting, he is just starting. Rahul Gandhi has taken the whole responsibility to himself for losing the recent election. He showed the maturity to rebrand himself. These are the new strategies to establish his political image by congress. All propaganda is for making headlines in the news media, and he is doing it effectively. People are talking much about her resignation. For Politicians how easy it is  to fool the people. I want to say that the news media has become the biggest mindless army.  

Wednesday, July 3, 2019

Afterall He is Your Husband

After a long time, around one and half years, I dialed my close friend's number and she picked up the phone and started crying. I asked her what happened, she told me that he had beaten me up again. "why '' I ask. She told me that "afterall he is my husband". These words are enough for her to shut my mouth. because these words she heard from her mom, her mom heard from her grandmother, and  grandmother heard from her great grandmother. I can't understand from where this bullshit came up in our society. I didn't read anywhere that your husband can beat you. If it is written somewhere in any book, I would like to read that book.  

Thursday, June 27, 2019

लाखों की बात

तो दोस्तो लाखो की बात है या नही पर काम की बात जरूर है कि इन दिनो मुझे समझ नही आ रहा मे क्या लिखना है। राजनीती मे तो रोज नये नाटक हो रहे हैं। कोई ताजगी  राजनीती में बची नही है।तो आइये बात करते हैं ताजा ताजा रिलीज हूई हिंदी फिल्म कबीर सिंह की। अगर कबीर सिंह की बात करेंगे तो लाखों बात करोङों पे जाएगी। कोन सा मेरी जेब से लग रहें है। जनता प्यार सें दे रही है। ओर जनता जनता जनार्दन है भाइसाब रातोंरात किसी को स्टार बना देती है। ओर रातोंरात बेकार भी यही जनता बनाती है । पहले तो कबीर सिंह  के ट्रेलर ने काफी सुर्खियां बटोरी। फिर गानों ने धमाल मचाया। अब पूरी फिल्म ने गदर मचाया हुआ है। फिल्म ने आग लगा दी भाईसाहब। शाहिद ओर कियारा ने इतनी संजीदगी से काम किया है कि सब को अपना पहला प्यार याद दिला दिया है। बेशक इस फिल्म के बाद शाहिद ओर कियारा के सितारे बुलंद हो गये हैं। दोनों ने इस फिल्म में जान डाल दी, ओर फिल्म ने दोनो के स्टारडम में जान डाल दी है। इसे कहते हे असली गिव एंड टेक, पहले दो फिर लो।

Tuesday, May 28, 2019

Dead Democracy

I haven't written anything since last one month. I didn't have enough time to  write my opinion because of the last semester projects and exams. Being a student of mass communication at CU Punjab I met various peoples, belonging to Kerala, Telangana, Bihar, Rajasthan, UP Orissa, Punjab and some other states also. Latest LokSabha Election was in between the ideologies. The biggest ever battle of ideologies. The battle was between the public who supports the major leader and who don't support the leading star of the election. There was no election between the candidates. There was no other option to choose. one single party was there. They ran solo in the race and became the winner. Is this democracy? Then what is democracy? There could be no chance in the future for the word democracy. Who will be responsible for the death of democracy, off course the public, who goes with the pity emotions and waves of some charismatic people. They don't apply their mind, they go with the heart. And they make God to somebody. I have seen too many young people on social media and my surroundings campaigning for the lead star of the election. I can't understand  that it was an election or a grand festival for the celebration of the death of democracy. People got  honey trapped every time to the cheeji speeches of their opinion leader. and they don't even realise what they are doing.  

Saturday, March 30, 2019

बातों के भूत

हमारे महान देश भारत के लोग बड़े बातूनी होते है।
नवजात बच्चे से भी बात करने की उम्मीद की जाती है।
कुछ लोग तो ऐसे भी है जो बच्चे के जन्म के पहले ही उससे बात करना शुरू कर देते है।
महाभारत में भी अभिमन्यु ने माँ के पेट में ही बोहत कुछ सिख लिया था। अभी के नवजात बच्चे तो इतने ज्यादा बातूनी है की आश्चर्य होता है उन्हें सुनकर।
हैरान कर देने वाली बात है की ये बदलाव आया कैसे ?
कहा से इस नस्ल में इतनी बढ़िया चीजे अपने आप आ रही है ?
माँ के पेट से सीख के आ रहे है क्या ये सब कुछ, आइये आइये आजकल बातूनी लोगों की डिमांड भी बोहत है। हर नौकरी में संचार कौशल में निपुणता एक पात्रता मापदंड होता है।
लेकिन क्या सिर्फ बातों से गुजारा हो जाता है ? कुछ लोगो का हो जाता है।
मैंने कुछ ऐसे लोगो को करीब से देखा है जिन्होंने जिंदगी भर  सिर्फ बातें मारी है और अपनी सारी जिम्मेदारियां अपने सारे काम भी बातों बातों में निपटा दिए।
कुछ लोगों से जितनी चाहे बातें  करा लो वो थकते ही नहीं,  वो बात करने के इतने ज्यादा आदि होते है की एक बार शुरू हो गऐ तो बस फिर।  विश्वविद्याल्य  के पुस्तकालय  में भी वे किसी न किसी मुद्दे पे चर्चा करेंगे।हमारे हॉस्टल में तो कुछ लोग सिर्फ बातें मारने के लिए लाइब्रेरी आते है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर भी तो देखो बातों बातों में किस तरह वक़्त  का पता ही नहीं चलने दिया।
ओर अब एक बार फिर आपका टाइमपास करने का सोच रहे है।
अपनी अपनी प्रतिभा है कुछ  ही लोगों के पास होती है।
ये होता भी है कुछ लोग बातें बड़ी मजेदार करते है पर कुछ लोगों की बाते बड़ी बेस्वाद होती है।
जैसे हमारे एक संघर्षशील  युवा राजनेता राजनीति जिनके खून में होनी चाहिए थी मगर अब क्या करे अपना अपना हुनर  है।
हर किसी की बात में मजा आये जरुरी तो नहीं , मजा किसी का गुलाम नहीं साहब आये तो आये ना आए तो ना आए उसकी अपनी मर्जी है।
पर जनता को मजा चाहिए मजेदार बात करने वाले आजकल डिमांड में है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर देखो किस तरह बातो बातों में लोगों को अपना बना लेते है और कुछ करना भी नहीं पड़ता।
एक पुरानी  फिल्म भी है ''बातों बातों में'' अगर वक़्त हो तो देखना बातों बातों में फिल्म कब पूरी हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
वैसे ''मेरे  प्यारे प्राइम मिनिस्टर'' भी एक फिल्म है अभी अभी रिलीज़ हुइ  है मैंने देखी  नहीं है पर नाम अच्छा  है
बातों बातों में यहाँ कई चुनाव लडे गए कई जीते गए पर इस बार वाला चुनाव बड़ा दिलचस्प है।  हर रोज अख़बारों में बड़ी गजब सुर्खिया होती है, 'मैं  भी चौकीदार'[। ''चौकीदार चोर है''। ''एक ही चौकीदार चोर है बाकी सब ईमानदार''।
सोशल मीडिया का तो पूरा पारिद्रश्य ही अलग है।
काफी दिलचस्प चुनाव होने जा रहा है ये, मुद्दा ये है क्या आने वाले समय में अब चुनाव ऐसे ही होंगे , बड़ा दिलचस्प होगा अगर ऐसे ही होंगे।
हर तरह के मीडिया में बातें बोहत ज्यादा हो रही है
मीडिया को छोड़ भी दे तो परिवार, पड़ोस , मित्र मंडली इन में भी काफी ज्यादा बाते  हो रही है।जैसे लोग खाली बैठे है। ये आई पी एल ने थोडा ध्यान भटका दिया। आइ पी एल की बात अगली बार करेंगे।
अभी तो  ये चुनाव ही बहुत बडा उत्सव है हमारे लिए।
सोशल मीडिया ने तो पूरी संचार व्यवस्था को ही नए आयाम दे दिए है जिसके जो दिल में आये  खुल के बोल दो।
में भी तो देखो बातों बातों में कहा तक आ गया।
समस्या ये है की ज्यादा बातें मरने वाले को फिर लोग लातें मरते है,  तो भैया बस अब बोहत हो गया।
शुभरात्रि। शब्बा खैर। राम राम।सत श्री अकाल।

Sunday, March 17, 2019

कुर्सी

शुक्रवार सुबह  सात बजे  में बठिंडा से हिसार की ट्रेन मे बैठा । सामान्य श्रेणी वार्ड था,  उस वक्त डिब्बे मे एक ही आदमी था।जैसे ही मै उसके बगल मे बेठा, उसने अजीब तरीके से देखा, उसे लगा शायद अब उसका सब सीटों पर जो एकाधिकार है वो खत्म हो जाएगा।
जैसे जैसे लोग बढ रहे थे उन महाशय की भोहें तन रही थी। मै बङे गौर से देख रहा था, इतने में एक महिला ओर पुरूष डिब्बे में आये पर कोई भी सीट खाली नही है, महिला अपने साथी सें कह रही थी मुझे कोई सीट दिलाओ उन दोनो ने आगे ओर पिछे दोनो ङिब्बों मे देखा पर कही कोई सीट नही। शायद महिला ने फिर से पुछा की किसी से बात करो सीट के बारे में, व्यक्ति चिल्लाया तुम्हे बैठना है तो तुम पुछ लो किसी से।
मैं ऊठा और अपनी सीट उस महिला को दे दी।
ट्रेन मे ही नही हमारे महान भारत मे सब जगह एसा ही है।
सीट चाहे बस की हो या किसी मंत्री की एक बार मिल गई तो इंसान उससे टस से मस नही होता। इंसान की फितरत ही एसी है, बस अपने लिए जगह चाहिए फिर किसी को गिराना भी पङे तो इंसान को कोई गुरेज नही।
इतिहास गवाह है इस कुर्सी के लिए बेटे ने बाप का ओर भाई ने भाइ का कत्ल किया है। पर ये कुर्सी कभी किसी की नही हुई।
शायद यही खासियत है कुर्सी की, बेवफा होकर  भी जनता से वफा करती हेै।
जिस दिन ये किसी एक से वफा कर लेगी  तो  वो गुलामी का मंजर खतरनाक होगा।।
कुर्सी का नशा ही कुछ ऐसा है बङे बङो की जात बदल जाती है।
पर फिर कुर्सी भी अपनी जात दिखाती हेै
देश मे जितने भी लोग इस कुर्सी पर बैठे अगर उन मे से किसी एक ने भी अगर अपने इमान से काम किया होता तो आज मंजर कुछ और होता।
पिछले कुछ वर्षो मे मैने भी एक दो चुनाव देखे ओर ये पाया की जनता ने जिससे भी उम्मीद लगाई उसीने जनता की बैंड बजाई।
मगर फिर जनता भी अच्छे से बजाती है।
अब सवाल ये हे हम कब तक एक दूसरे को बजाते रहेंगे
अब वक्त आ गया है एक दुसरे को सुनने का।

मेंटल ही है

कंगना रानोत की आगामी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के काफी चर्चे है। हिंदी फिल्म  'गैंगस्टर' सें अपने अभिनय की शुरूआत करने वाली इस...

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