कंगना रानोत की आगामी फिल्म 'जजमेंटल है क्या' के काफी चर्चे है। हिंदी फिल्म 'गैंगस्टर' सें अपने अभिनय की शुरूआत करने वाली इस अभिनेत्री ने बेशक बहुत अच्छा काम किया है।
कंगना की अभिनय क्षमता पे शक नही किया जा सकता। मे तो ये कहना चाहूंगा कि वो अपना काम दो सौ प्रतिशत मेहनत के साथ करती है।
ओर इस बात का फायदा भी कंगना को मिला है। लोगों ने काफी पसंद किया है उन्हें। कंगना हिंदी फिल्मों की अब तक की सबसें मुहंफट सफल अभिनेत्री रही हे जो सबसे ज्यादा विवादों मे भी रही है। ओर ये आश्चर्यजनक है कि कंगना का हर नकारात्मक विवाद उसके फिल्मी कैरियर के लिय सकारात्मक साबित हुआ है।
हाल ही में एक पत्रकार के साथ हुआ कंगना का विवाद हर किसी की जुबान पर है। उससें कंगना की दो आगामी फिल्मो को बहुत बङा फायदा मिलने वाला है। कंगना की छवि को इन दोनों फिल्मों मे खूब भुनाया जाएगा। अब सवाल यह है कि क्या कंगना जानबूझकर अपनी फिल्मों को हिट करवाने के लिए अपनी यह छवि बना रही है। अगर वास्तव में एसा है तो मैं कंगना को अपनी कोहनी तक हाथ जोङकर प्रणाम करना चाहूंगा। काम के प्रति इतना त्याग और जूनून ओर कहां मिलेगा आपको।
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Thursday, July 11, 2019
मेंटल ही है
Thursday, July 4, 2019
Newsmaker of the Year: RaGa
Rahul Gandhi is making much news, since he lost the election. Even before the election he was very aggressive. His resignation grabs the attention of people. Since the last four - five days he holded the top position of the front page in all English and Hindi newspapers. He became the center of talk at all leading news channels. He is not quitting, he is just starting. Rahul Gandhi has taken the whole responsibility to himself for losing the recent election. He showed the maturity to rebrand himself. These are the new strategies to establish his political image by congress. All propaganda is for making headlines in the news media, and he is doing it effectively. People are talking much about her resignation. For Politicians how easy it is to fool the people. I want to say that the news media has become the biggest mindless army.
Wednesday, July 3, 2019
Afterall He is Your Husband
After a long time, around one and half years, I dialed my close friend's number and she picked up the phone and started crying. I asked her what happened, she told me that he had beaten me up again. "why '' I ask. She told me that "afterall he is my husband". These words are enough for her to shut my mouth. because these words she heard from her mom, her mom heard from her grandmother, and grandmother heard from her great grandmother. I can't understand from where this bullshit came up in our society. I didn't read anywhere that your husband can beat you. If it is written somewhere in any book, I would like to read that book.
Thursday, June 27, 2019
लाखों की बात
तो दोस्तो लाखो की बात है या नही पर काम की बात जरूर है कि इन दिनो मुझे समझ नही आ रहा मे क्या लिखना है। राजनीती मे तो रोज नये नाटक हो रहे हैं। कोई ताजगी राजनीती में बची नही है।तो आइये बात करते हैं ताजा ताजा रिलीज हूई हिंदी फिल्म कबीर सिंह की। अगर कबीर सिंह की बात करेंगे तो लाखों बात करोङों पे जाएगी। कोन सा मेरी जेब से लग रहें है। जनता प्यार सें दे रही है। ओर जनता जनता जनार्दन है भाइसाब रातोंरात किसी को स्टार बना देती है। ओर रातोंरात बेकार भी यही जनता बनाती है । पहले तो कबीर सिंह के ट्रेलर ने काफी सुर्खियां बटोरी। फिर गानों ने धमाल मचाया। अब पूरी फिल्म ने गदर मचाया हुआ है। फिल्म ने आग लगा दी भाईसाहब। शाहिद ओर कियारा ने इतनी संजीदगी से काम किया है कि सब को अपना पहला प्यार याद दिला दिया है। बेशक इस फिल्म के बाद शाहिद ओर कियारा के सितारे बुलंद हो गये हैं। दोनों ने इस फिल्म में जान डाल दी, ओर फिल्म ने दोनो के स्टारडम में जान डाल दी है। इसे कहते हे असली गिव एंड टेक, पहले दो फिर लो।
Tuesday, May 28, 2019
Dead Democracy
I haven't written anything since last one month. I didn't have enough time to write my opinion because of the last semester projects and exams. Being a student of mass communication at CU Punjab I met various peoples, belonging to Kerala, Telangana, Bihar, Rajasthan, UP Orissa, Punjab and some other states also. Latest LokSabha Election was in between the ideologies. The biggest ever battle of ideologies. The battle was between the public who supports the major leader and who don't support the leading star of the election. There was no election between the candidates. There was no other option to choose. one single party was there. They ran solo in the race and became the winner. Is this democracy? Then what is democracy? There could be no chance in the future for the word democracy. Who will be responsible for the death of democracy, off course the public, who goes with the pity emotions and waves of some charismatic people. They don't apply their mind, they go with the heart. And they make God to somebody. I have seen too many young people on social media and my surroundings campaigning for the lead star of the election. I can't understand that it was an election or a grand festival for the celebration of the death of democracy. People got honey trapped every time to the cheeji speeches of their opinion leader. and they don't even realise what they are doing.
Saturday, March 30, 2019
बातों के भूत
नवजात बच्चे से भी बात करने की उम्मीद की जाती है।
कुछ लोग तो ऐसे भी है जो बच्चे के जन्म के पहले ही उससे बात करना शुरू कर देते है।
महाभारत में भी अभिमन्यु ने माँ के पेट में ही बोहत कुछ सिख लिया था। अभी के नवजात बच्चे तो इतने ज्यादा बातूनी है की आश्चर्य होता है उन्हें सुनकर।
हैरान कर देने वाली बात है की ये बदलाव आया कैसे ?
कहा से इस नस्ल में इतनी बढ़िया चीजे अपने आप आ रही है ?
माँ के पेट से सीख के आ रहे है क्या ये सब कुछ, आइये आइये आजकल बातूनी लोगों की डिमांड भी बोहत है। हर नौकरी में संचार कौशल में निपुणता एक पात्रता मापदंड होता है।
लेकिन क्या सिर्फ बातों से गुजारा हो जाता है ? कुछ लोगो का हो जाता है।
मैंने कुछ ऐसे लोगो को करीब से देखा है जिन्होंने जिंदगी भर सिर्फ बातें मारी है और अपनी सारी जिम्मेदारियां अपने सारे काम भी बातों बातों में निपटा दिए।
कुछ लोगों से जितनी चाहे बातें करा लो वो थकते ही नहीं, वो बात करने के इतने ज्यादा आदि होते है की एक बार शुरू हो गऐ तो बस फिर। विश्वविद्याल्य के पुस्तकालय में भी वे किसी न किसी मुद्दे पे चर्चा करेंगे।हमारे हॉस्टल में तो कुछ लोग सिर्फ बातें मारने के लिए लाइब्रेरी आते है।
हमारे प्यारे प्राइम मिनिस्टर भी तो देखो बातों बातों में किस तरह वक़्त का पता ही नहीं चलने दिया।
अपनी अपनी प्रतिभा है कुछ ही लोगों के पास होती है।
ये होता भी है कुछ लोग बातें बड़ी मजेदार करते है पर कुछ लोगों की बाते बड़ी बेस्वाद होती है।
जैसे हमारे एक संघर्षशील युवा राजनेता राजनीति जिनके खून में होनी चाहिए थी मगर अब क्या करे अपना अपना हुनर है।
हर किसी की बात में मजा आये जरुरी तो नहीं , मजा किसी का गुलाम नहीं साहब आये तो आये ना आए तो ना आए उसकी अपनी मर्जी है।
पर जनता को मजा चाहिए मजेदार बात करने वाले आजकल डिमांड में है।
एक पुरानी फिल्म भी है ''बातों बातों में'' अगर वक़्त हो तो देखना बातों बातों में फिल्म कब पूरी हो जाएगी पता भी नहीं चलेगा।
वैसे ''मेरे प्यारे प्राइम मिनिस्टर'' भी एक फिल्म है अभी अभी रिलीज़ हुइ है मैंने देखी नहीं है पर नाम अच्छा है
बातों बातों में यहाँ कई चुनाव लडे गए कई जीते गए पर इस बार वाला चुनाव बड़ा दिलचस्प है। हर रोज अख़बारों में बड़ी गजब सुर्खिया होती है, 'मैं भी चौकीदार'[। ''चौकीदार चोर है''। ''एक ही चौकीदार चोर है बाकी सब ईमानदार''।
सोशल मीडिया का तो पूरा पारिद्रश्य ही अलग है।
काफी दिलचस्प चुनाव होने जा रहा है ये, मुद्दा ये है क्या आने वाले समय में अब चुनाव ऐसे ही होंगे , बड़ा दिलचस्प होगा अगर ऐसे ही होंगे।
हर तरह के मीडिया में बातें बोहत ज्यादा हो रही है
मीडिया को छोड़ भी दे तो परिवार, पड़ोस , मित्र मंडली इन में भी काफी ज्यादा बाते हो रही है।जैसे लोग खाली बैठे है। ये आई पी एल ने थोडा ध्यान भटका दिया। आइ पी एल की बात अगली बार करेंगे।
सोशल मीडिया ने तो पूरी संचार व्यवस्था को ही नए आयाम दे दिए है जिसके जो दिल में आये खुल के बोल दो।
में भी तो देखो बातों बातों में कहा तक आ गया।
समस्या ये है की ज्यादा बातें मरने वाले को फिर लोग लातें मरते है, तो भैया बस अब बोहत हो गया।
शुभरात्रि। शब्बा खैर। राम राम।सत श्री अकाल।
Sunday, March 17, 2019
कुर्सी
शुक्रवार सुबह सात बजे में बठिंडा से हिसार की ट्रेन मे बैठा । सामान्य श्रेणी वार्ड था, उस वक्त डिब्बे मे एक ही आदमी था।जैसे ही मै उसके बगल मे बेठा, उसने अजीब तरीके से देखा, उसे लगा शायद अब उसका सब सीटों पर जो एकाधिकार है वो खत्म हो जाएगा।
जैसे जैसे लोग बढ रहे थे उन महाशय की भोहें तन रही थी। मै बङे गौर से देख रहा था, इतने में एक महिला ओर पुरूष डिब्बे में आये पर कोई भी सीट खाली नही है, महिला अपने साथी सें कह रही थी मुझे कोई सीट दिलाओ उन दोनो ने आगे ओर पिछे दोनो ङिब्बों मे देखा पर कही कोई सीट नही। शायद महिला ने फिर से पुछा की किसी से बात करो सीट के बारे में, व्यक्ति चिल्लाया तुम्हे बैठना है तो तुम पुछ लो किसी से।
मैं ऊठा और अपनी सीट उस महिला को दे दी।
ट्रेन मे ही नही हमारे महान भारत मे सब जगह एसा ही है।
सीट चाहे बस की हो या किसी मंत्री की एक बार मिल गई तो इंसान उससे टस से मस नही होता। इंसान की फितरत ही एसी है, बस अपने लिए जगह चाहिए फिर किसी को गिराना भी पङे तो इंसान को कोई गुरेज नही।
इतिहास गवाह है इस कुर्सी के लिए बेटे ने बाप का ओर भाई ने भाइ का कत्ल किया है। पर ये कुर्सी कभी किसी की नही हुई।
शायद यही खासियत है कुर्सी की, बेवफा होकर भी जनता से वफा करती हेै।
जिस दिन ये किसी एक से वफा कर लेगी तो वो गुलामी का मंजर खतरनाक होगा।।
कुर्सी का नशा ही कुछ ऐसा है बङे बङो की जात बदल जाती है।
पर फिर कुर्सी भी अपनी जात दिखाती हेै
देश मे जितने भी लोग इस कुर्सी पर बैठे अगर उन मे से किसी एक ने भी अगर अपने इमान से काम किया होता तो आज मंजर कुछ और होता।
पिछले कुछ वर्षो मे मैने भी एक दो चुनाव देखे ओर ये पाया की जनता ने जिससे भी उम्मीद लगाई उसीने जनता की बैंड बजाई।
मगर फिर जनता भी अच्छे से बजाती है।
अब सवाल ये हे हम कब तक एक दूसरे को बजाते रहेंगे
अब वक्त आ गया है एक दुसरे को सुनने का।
Monday, March 11, 2019
सनसनी ओर सन्नाटा
समाचार चैनल (ब्राडकास्ट मिडियम) की सबसे बङी मजबूरी ये हो गई है कि साधारण समाचार सुनने ओर देखने मे लोगो की दिलचस्पी नही रही।
आजकल हर अखबार ओर चैनल सनसनी की तलाश मे रहता है। बदकिस्मती सें अगर कोई वाकया हो गया तो बस बन गया काम।अखबारो ओर चैनलो के साथ जनता का वक्त भी अच्छा बीत जाता है। सनसनी खत्म तो पङोसी भी पुछ लेता है, इतना सन्नाटा क्यों है भाई।
सब तमाशबीन है, किसी भी घटना या वाकये को उत्सव की तरह लेते है । जब उत्साह खत्म तो डब्बा गुल।
कभी सनसनी मिल जाती है तो कभी सनसनी बनानी पङती है।कभी राफेल को उठाया जाता है, तो कभी राफेल के कागजात।
हमारे एक युवा नेता तो रोज एक नई सनसनी ले आते है, ये आजकल इतनी खबरे बना रहे हे की समाचार एजेंसिया भी इनके सामने कुछ नही। नेता तो नेता अब तो अभिनेता भी पैसे लेकर खबरे बना रहे है। जनता को अब इस मसाले की आदत इस कदर हो गई है कि जब तक वो कोई डिबेट शो नही देख लेते, जिसमे ऐंकर ओर मेहमान एक दुसरे को गालिया दे रहे हो, खाना नही पचता। अगर ये पत्रकारिता है तो , फिर पत्रकारिता क्या है ?
Thursday, March 7, 2019
शुक्रिया जिंदगी
महिलाऐं, जिस तरह एक माॅ, बहन, बीवी ओर बेटी के रुप में सबपे अपना स्नेह लुटाती है। उसको सिर्फ चंद अलफाज में बयां करना नामुमकिन है। फिर भी मै कोशिश करूंगा। जितनी भी महिलाओं से में अब तक मिला हुॅ , या जिनको जानता हूँ, वो मुझसे बङे ही प्यार सें पेश आते है। मैंने अपनी माॅॅ को एक दशक सें नही देखा, तेरह साल पहले वो इस दुनिया से चली गई थी, लेकिन जब तक मै जिंदा हू उनकी यादे मेरे जेहन सें धुंधली नही हो सकती।
हालांकि मेरे घर ओर परिवार मे ओर भी महिलाऐ है, जिनसे खूब स्नेह मिला, दो भाभी हैं, उनकी दो बेटियां हैं, जो मुझे बेहद अजीज हैै।जिंदगी मे कुछ ओर भी महिलाओ सें नि:स्वार्थ स्नेह मिला। इन सभी महिलाओ के प्रति मे हमेशा कर्जदार रहूंगा।
ऑश्चर्य होता है ओरत के दामन मे इतना प्यार आता कहां से है। शायद उपरवाले ने ओरत के दामन को महासागर (समुद्र) से ज्यादा प्यार अपने अंदर वहन करने की ताकत दी है।
एक ओरत ही ऐसा कर सकती है।
सबको अन्तर्राष्ट्रिय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।
Wednesday, March 6, 2019
जनसंचार द्वन्द
जिस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे है वो तो एक अलग मुद्दा है उसके बारे में सब को पता है कि मीडिया किस तरह का काम कर रहा है।
दूसरे को दोष देना और वही काम खुद भी किये जाना अपने आप में एक बहुत बङी कला है, ओर काबिल ए तारीफ है, और पत्रकारिता में इस वक़्त यह एक नयी लत बन गया है।
कौन चोर है कौन ईमानदार है, बस एक दुसरे पर आरोप लगाते रहो। पत्रकारिता में हाल ही में बहुत से ऐसे मंच आ गए है जो वेब आधारित है, और खुद को आत्मनिर्भर और ईमानदार कहते है, और जनता से आर्थिक मदद भी मांग रहे है।
पर क्या हम इनकी ईमानदारी पर पूरी तरह विश्वास कर सकते है ? यह एक बड़ा सवाल है।
इन नए आत्मनिर्भर जनसंचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तो वही है, जो पहले संचार चैनलो और अखबारों से जुड़े हुए थे, वो कोई मंगल गृह से तो आये नहीं है।
हाल ही में द वायर ने रवीश कुमार के साथ वर्तमान पत्रकारिता पर हुई एक चर्चा दिखाई जिसमें रवीश कुमार एक तरह से जनता के दिलो दिमाग में एक राय बनाते नजर आये।
रवीश ने पत्रकारों पर गंभीर सवाल उठाये और मौजूदा राजनीतिक हालात पे भी बात की , जिसमे सब दूसरे पत्रकारों और चैनलों को उन्होंने किसी राजनितिक विचार धारा और किसी व्यक्ति विशेष का समर्थक बताया, जो सरकार और राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा को लोगो के दिमाग में डाल रहे है।
रवीश कुमार के हिसाब से सिर्फ दो चार पत्रकार और जनसंचार माध्यम ही सच्ची पत्रकारिता कर रहे है।
अगर आपको अंगूर नहीं मिले तो अंगूर खट्टे है ये तो वही बात हो गई।
रवीश ये भूल गए शायद की जिस मीडिया हाउस से वो जुड़े हुए है उसके जरिये वो भी जनता के बीच रोज रात को अपनी और अपने चैनल की विचारधार जनता के दिमाग में डालते है वो भी रिपोर्टिंग नहीं प्रोपोगैंडा है।जिस यकीन और आत्मविश्वाश से रवीश अपने विचार जनता से साझा करते है की दर्शक के पास यकीन करने के आलावा दूसरा रास्ता ही नही होता।
शायद उनके पास कोई यन्त्र है जिससे झूठ और सच को मापा जा सकता है।
बेशक अभी पत्रकारिता जगत के जो माजूदा हालत है , पत्रकारों की चिंतन करने की जरूरत है, की वो इस पैशे में किसलिए आये है और क्या कर रहे।
Sunday, March 3, 2019
स्त्री ओर संघर्ष
Friday, March 1, 2019
एक ही रास्ता
मेरे ख़याल से ये पाकिस्तान का डर भी है और ये पाकिस्तान की चाल भी है।
इमरान खान अब एक अलग तरह की रणनीति पे काम कर रहा है।
वो अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी छवि बदलना चाहता है चीन समेत कोई भी पाकिस्तान समर्थक देश खुलकर पाकिस्तान की मदद करने को तैयार नहीं है ।क्योंकि पाकिस्तान के मुखोटे के पीछे जो दह्सतगर्दी है उससे सब वाकिफ है ।
जब से इमरान खान ने सत्ता संभाली है जब भी वो बोलता है तो भारत के साथ अपने सम्बन्ध सुधारने की बात करता है, एक नए पाकिस्तान की बात करता है, तरक्की की बात करता है दहशतगर्दी को ख़तम करने की बात करता है ये एक प्रोपागैंडा भी हो सकता है और उसकी मजबूरी भी हो सकती है। शायद पकिस्तान को ये समझ आआ गया है की तरक्की पसंद मुल्क को दहशतगर्दी से कोई फायदा नहीं है
इमरान खान ने कहा भी है की अब उसकी जमीन दहशतगर्दी के लिए इस्तेमाल नहीं होगी ।
The Business of News
Wednesday, February 27, 2019
भावनाओं को समझो
और उसके दिल में एक उतावलापन है यहाँ की जनता और यहाँ के राजनेता दोनों का मन एक जैसा है दोनों को जल्दी है।
बहुत जल्दी यहाँ लोग अपनी बना लेते है और बदल देते है । कभी सरकार को गालिया देने लगते है कभी सरकार बधाइयाँ देने लगते है । हाल ही में जो भारत सरकार ने पाकिस्तान को जो जवाब दिया वो बोहत जल्दी में किया हुआ काम है
वो एक जवाब ही था अब एक बार वो जवाब देंगे फिर हम ।दोनों मुल्क ही इसके स्थाई समाधान को नजरअंदाज कर रहे है। जनता को बेवकूफ समझने की गलती कर रहे है ये।
जनता को जवाब नहीं इस समस्या का हल चाहिए अफ़सोस तो इस का है की जनता को भी गुमराह किया जा रहा है । जनता का जो हित है उससे उसका ध्यान भटकाया जा रहा है।
जनता जो सोशल मीडिया पे संचार में भाग ले रही है वो अच्छा है। मगर हर बात पे सरकार को गालिया देना हर बात पे बधाईयाँ देना ठीक नहीं है हमें सरकार को काम करने देना चाहिए और हमें खुद भी काम करना चाहिए।
बोहत ज्यादा संचार भी कई बार ज्यादा घी की तरह खाना ख़राब कर देता है तो हर इंसान को अपनी हद समझनी चाहिए।
भारत हमेशा एक परिपक़्व सोच वाला देश रहा है पर अब सरकार की सोच में वो परिपक़्वता और दूरदर्शिता नजर नहीं आती। जब किसी बीमारी को जड़ से ख़तम करना है तो शोर्टकट से काम नहीं चलता । हमें इस समस्या से हमेशा के लिए निजात चाहिए अभी इन्होने जवाब दे दिया हे हो गया इनका काम पूरा।
पाकिस्तान धूर्त भी है और चालक भी है वो इस माहौल का पूरा फायदा उठाएगा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वो सहानुभति प्राप्त करने की कोशिश करेगा वो कहेगा की हम तो बातचीत से मुद्दा सुलझाना चाहते है पर भारत जंग चाहता है।
हालाँकि पाकिस्तान ने हमेशा शांति के नाम पे धोखा दिया है मगर फिर भी में ये समझता हु की शांति चैन और अमन की बात को किसी भी कीमत पे एक मौका दिया जाना चाहिए।
जब सामने वाला शांति की बात कर रहा है तो हमें ये मौका गंवाना नहीं चाहिए। जंग की शुरुआत तो आसान है मगर कहा ख़तम होगी कैसे होगी कब होगी इसका अंदाजा लगाना नामुमकिन है। आखिर में बातचीत ही हर मुद्दे का हल है। जो इंसान गुड़ खा के मर जाये उसे जहर देने की जरूरत ही नहीं है ।
Friday, February 22, 2019
जंगलराज
सरकारे आती है जाती है पर आतंकवाद के मुद्दे का कोई हल कर पाने में हर सरकार अभी तक नाकाम रही है।
माना की आतंकवाद का मुद्दा हर देश के लिए सिरदर्द बना हुआ है।
पर देश की आवाम से देश की जनता से झूठ बोलना कहा तक सही है, सरकार के नुमाइंदे बोलते है देश के दुश्मनो को बक्शा नहीं जायेगा, बोहत सुन लिया भैया वो दिन कब आएगा ये बतलाइये।
ये फालतू के भाषण मत झाड़िये कान पक्क गए है लोगो को कुछ कर के दिखाए।
अगर आप में कुछ करने की ताकत नहीं है तो सिर्फ वोट की राजनीती के चक्कर में लोगो को गुमराह करना ठीक नहीं है।
क्यों नहीं ये लोग (वर्तमान सरकार ) कश्मीर के मुद्दे पे बात करते । कब तक ये लोग इसी तरह लोगो की बलि देते रहेंगे।
कश्मीर के हालात किसी से छुपे नहीं है , वहा पे भारतीय आर्मी लोगो के साथ जो सुलूक कर रही वो भी किसी से छुपा नहीं है।
यही कारण है की कश्मीरी युवको में रोष बढ़ रहा है
उन लोगो को इतना डराया गया है की उनका मौत का डर ही निकल गया है।
और हाल ही में जो आतंकवादी हमला हुआ उससे तो हालत और ख़राब हो गए है।
देशभर में कश्मीरी लोगों पे हमले हो रहे है , देश के अलग अलग हिस्सों से कश्मीरी युवकों को निकाला ला जा रहा है।
ये बोहत ही गंभीर हालात है इससे हालात ज्यादा बिगड़ेंगे सुधरेंगे नहीं।
सबसे हैरान करने वाली बात ये है की वर्तमान में जो लोग सरकार चला रहे है। वो इस मुद्दे पे कुछ बोल नहीं रहे लोगों से अपील भी नहीं कर रहे है की आप लोग शांति बनाये रखे हम इस मुद्दे को देख रहे है।
एक तरफ आप को कश्मीर चाहिए और दूसरी तरफ आप वहा शांति व्यवस्था बनाने में नाकामयाब है ।और अब तो हालात बाद से बदतर होते जा रहे है
सरकार क्या कर रही है कुछ समझ नहीं आ रहा है।
यहाँ सब अपनी अपनी रोटीया सेंकने में लगे हुए है। सरकार को चाहिए की पडोसी देश से बात करे उसके क्या मुद्दे है उसको क्या चाहिए एक न एक दिन ये मुद्दा सुलझाना ही पड़ेगा। आमने सामने बैठ कर के हर चीज पे बात करनी चाहिए जिससे दोनों मुल्को में अमन कायम हो सके जनता चैन और सुकून से रह सके ।
Sunday, February 17, 2019
धर्म और आतंकवाद
मुस्लमान है तो जरुर उसे आतंकवादी समझा जायेगा फिर वो उसकी सचाई कुछ भी हो।
ये जो आतंकवादी हमले हो रहे ये भी एक तरह से इसी तरह की घृणा का फायदा उठा के किये जा रहे हे।
कही न कही मुस्लिम युवको में रोष है की हम कुछ करे या न करे नाम हमारा ही होगा।
हमें इस चीज को बदलना होगा , मुसलमानो का जो सम्मान और आत्मविस्वाश है वो उन्हें लौटाना होगा।
अगर हिंदुस्तान जैसे देश में इस तरह की विसंगततियाँ होंगी तो जिम्मेदार हिंदुस्तान ही होगा
हिन्दोस्तान अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता है।
सब धर्मों के लोगो को बराबरी का अधिकार होना ही चाहिए।
यह हम एक पशु को किसी इंशानी जिंदगी से बड़ा बना देते है।
उसकी पीट पीट कर के हत्या कर देते है।
ये इंसानियत लोगो में कब आएगी की वो एक इन्सान की जिंदगी की कदर कर सके।
जिस दिन ये इंसानियत आ गई बोहत झगड़े फसाद, आतंकवाद ख़तम हो जायेंगे ।
Friday, February 8, 2019
जनतंत्र ओर जनसंचार
आज देश में लोकतंत्र को लेके जो माहोल बना हुआ है उसका जिम्मेदार कौन है।
वो जनता जो अपने प्रतिनिधि का सही आकलन नही कर पाती। या जनता द्वारा चुने गये वो प्रतिनिधि जो चुनाव से पूर्व किये गये वादे पूरा करने मे नाकाम रहते है।
या जिम्मेदार हें जनसंचार के वो माध्यम (मीडिया) जो रातोंरात किसी एरे गैरे नत्थूखैरे को राजनीति के आसमान का सितारा बना देते हैं। कुछ साल पहले कुछ लोग राजनीति मे आऐ भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए । सत्ता मे आने के बाद खुद उनहोंने भ्रष्टाचार करने के नये किर्तीमान स्थापित किए। बहुत से लोगो ने करोङो की विदेशी नोकरी छोङ कर इस राजनीतिक दल के साथ जुड गए।
जनसंचार के माध्यम अभी बहोत से नए राजनितिक चेहरों का निर्माण करने मे जुटे हुए है। वो चेहरे है आरक्षण आंदोलनों ओर विश्वविधालयो मे बयानबाजी करने वाले युवा नेता जो सता मे आने के पहले जनहित की बात करते है फिर अपना हित निकालते है।
सोशल नेटवर्किंग साइट के माध्यम से जनता भी इनको नायक बना देती है।
देखते देखते ये लोगो के दिलो दिमाग पर छा जाते हे। फिर राजनीति के गलियारे से होते हुये लोग सता मे आ जाते है। राजनीति अभी बहुत अच्छा विकल्प माना जाता है। खासकर अभिनय जगत से जुडे हुए लोगो के लिए।
इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्मृति इरानी है।
हाल ही मे दक्षिण भारत के प्रतिष्ठित अभिनेता कमल हासन ने राजनीति मे प्रवेश किया है। रजनीकांत ने भी अपना मन बना रखा है।
लोग इनसे बदलाव की उम्मीद कर रहे है।
लेकिन जनता को अब इस कदर धोखा खाने की आदत हो गई है की अब उनको धोखा अच्छा लगने लगा है।
जनसंचार के माध्यम भी अभी जनता के हित में काम नही कर रहे है। सब किसी ना किसी के पक्ष मे है। सिनेमा ने भी अब पक्षपात वाला रवैया अपना लिया है। हाल ही मे रिलीज हुई कुछ फिल्मे इसका ताजा उदाहरण है। अब जिसकी लाठी उसकी भैंस।
Wednesday, January 23, 2019
The Social Collaboration
Saturday, January 12, 2019
The Great Indian Politics
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