देश में जनसंचार के माध्यम (मीडिया) इस वक़्त जिस तरह का काम कर रहे हैं।
जिस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे है वो तो एक अलग मुद्दा है उसके बारे में सब को पता है कि मीडिया किस तरह का काम कर रहा है।
दूसरे को दोष देना और वही काम खुद भी किये जाना अपने आप में एक बहुत बङी कला है, ओर काबिल ए तारीफ है, और पत्रकारिता में इस वक़्त यह एक नयी लत बन गया है।
कौन चोर है कौन ईमानदार है, बस एक दुसरे पर आरोप लगाते रहो। पत्रकारिता में हाल ही में बहुत से ऐसे मंच आ गए है जो वेब आधारित है, और खुद को आत्मनिर्भर और ईमानदार कहते है, और जनता से आर्थिक मदद भी मांग रहे है।
पर क्या हम इनकी ईमानदारी पर पूरी तरह विश्वास कर सकते है ? यह एक बड़ा सवाल है।
इन नए आत्मनिर्भर जनसंचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तो वही है, जो पहले संचार चैनलो और अखबारों से जुड़े हुए थे, वो कोई मंगल गृह से तो आये नहीं है।
हाल ही में द वायर ने रवीश कुमार के साथ वर्तमान पत्रकारिता पर हुई एक चर्चा दिखाई जिसमें रवीश कुमार एक तरह से जनता के दिलो दिमाग में एक राय बनाते नजर आये।
रवीश ने पत्रकारों पर गंभीर सवाल उठाये और मौजूदा राजनीतिक हालात पे भी बात की , जिसमे सब दूसरे पत्रकारों और चैनलों को उन्होंने किसी राजनितिक विचार धारा और किसी व्यक्ति विशेष का समर्थक बताया, जो सरकार और राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा को लोगो के दिमाग में डाल रहे है।
रवीश कुमार के हिसाब से सिर्फ दो चार पत्रकार और जनसंचार माध्यम ही सच्ची पत्रकारिता कर रहे है।
अगर आपको अंगूर नहीं मिले तो अंगूर खट्टे है ये तो वही बात हो गई।
रवीश ये भूल गए शायद की जिस मीडिया हाउस से वो जुड़े हुए है उसके जरिये वो भी जनता के बीच रोज रात को अपनी और अपने चैनल की विचारधार जनता के दिमाग में डालते है वो भी रिपोर्टिंग नहीं प्रोपोगैंडा है।जिस यकीन और आत्मविश्वाश से रवीश अपने विचार जनता से साझा करते है की दर्शक के पास यकीन करने के आलावा दूसरा रास्ता ही नही होता।
शायद उनके पास कोई यन्त्र है जिससे झूठ और सच को मापा जा सकता है।
बेशक अभी पत्रकारिता जगत के जो माजूदा हालत है , पत्रकारों की चिंतन करने की जरूरत है, की वो इस पैशे में किसलिए आये है और क्या कर रहे।
जिस तरह की रिपोर्टिंग कर रहे है वो तो एक अलग मुद्दा है उसके बारे में सब को पता है कि मीडिया किस तरह का काम कर रहा है।
दूसरे को दोष देना और वही काम खुद भी किये जाना अपने आप में एक बहुत बङी कला है, ओर काबिल ए तारीफ है, और पत्रकारिता में इस वक़्त यह एक नयी लत बन गया है।
कौन चोर है कौन ईमानदार है, बस एक दुसरे पर आरोप लगाते रहो। पत्रकारिता में हाल ही में बहुत से ऐसे मंच आ गए है जो वेब आधारित है, और खुद को आत्मनिर्भर और ईमानदार कहते है, और जनता से आर्थिक मदद भी मांग रहे है।
पर क्या हम इनकी ईमानदारी पर पूरी तरह विश्वास कर सकते है ? यह एक बड़ा सवाल है।
इन नए आत्मनिर्भर जनसंचार माध्यमों में काम करने वाले पत्रकार तो वही है, जो पहले संचार चैनलो और अखबारों से जुड़े हुए थे, वो कोई मंगल गृह से तो आये नहीं है।
हाल ही में द वायर ने रवीश कुमार के साथ वर्तमान पत्रकारिता पर हुई एक चर्चा दिखाई जिसमें रवीश कुमार एक तरह से जनता के दिलो दिमाग में एक राय बनाते नजर आये।
रवीश ने पत्रकारों पर गंभीर सवाल उठाये और मौजूदा राजनीतिक हालात पे भी बात की , जिसमे सब दूसरे पत्रकारों और चैनलों को उन्होंने किसी राजनितिक विचार धारा और किसी व्यक्ति विशेष का समर्थक बताया, जो सरकार और राजनीतिक पार्टियों की विचारधारा को लोगो के दिमाग में डाल रहे है।
रवीश कुमार के हिसाब से सिर्फ दो चार पत्रकार और जनसंचार माध्यम ही सच्ची पत्रकारिता कर रहे है।
अगर आपको अंगूर नहीं मिले तो अंगूर खट्टे है ये तो वही बात हो गई।
रवीश ये भूल गए शायद की जिस मीडिया हाउस से वो जुड़े हुए है उसके जरिये वो भी जनता के बीच रोज रात को अपनी और अपने चैनल की विचारधार जनता के दिमाग में डालते है वो भी रिपोर्टिंग नहीं प्रोपोगैंडा है।जिस यकीन और आत्मविश्वाश से रवीश अपने विचार जनता से साझा करते है की दर्शक के पास यकीन करने के आलावा दूसरा रास्ता ही नही होता।
शायद उनके पास कोई यन्त्र है जिससे झूठ और सच को मापा जा सकता है।
बेशक अभी पत्रकारिता जगत के जो माजूदा हालत है , पत्रकारों की चिंतन करने की जरूरत है, की वो इस पैशे में किसलिए आये है और क्या कर रहे।
रवीश कुमार और उनके मीडिया हाउस को भी पत्रकारिता का पाठ फिर से पढ़ने की जरूरत है।
Keep it up
ReplyDeleteThank You Sir
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